ऊँचा व्यक्तित्व लम्बाई से नहीं होता ,अहिंसा ,त्याग ,परोपकार ,श्रम निरहंकारिता ही किसी को ऊँचा बनाती है | एक ईश्वर विश्वासी ने अपनी सारी धन -दौलत लोक -कल्याण के कार्यों में लगा दी और संयम का जीवन व्यतीत करना शुरु कर दिया | अब तो उनके सत्कार्यों की सर्वत्र चर्चा होने लगी | जनता के कुछ प्रतिनिधियों ने उनसे निवेदन किया -"आपका त्याग प्रशंसनीय है | आपकी सेवाओं से समाज ऋणी है | हम सब सार्वजनिक रुप से आपका अभिनन्दन करना चाहते हैं | उन्होंने मुस्कराते हुए कहा -"मैंने कोई त्याग नहीं किया ,लाभ लिया है | दुकानदार ग्राहक को वस्तु देकर कोई त्याग नहीं करता ,वह तो बदले में उसकी कीमत लेकर लाभ कमाता है | उसी प्रकार क्रोध ,लोभ मोह आदि को छोड़कर अपने स्वभाव में अहिंसा ,परोपकार और क्षमा आदि को स्थान देना ,वास्तव में त्याग नहीं ,ये तो लाभ का सौदा है | इन सद्गुणों की पूंजी पर ही दैवी अनुदान मिलते हैं औरजीवन सफल होता है | '
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