'निज अस्तित्व की चिंता छोड़कर समाज के कल्याण के लिये जो अग्रसर होते हैं ,वे बन जाते हैं -जन -मानस के मोती | '
विनोबा भावे अपनी भूदान यात्रा के दौरान दक्षिण भारत में पेनुगोड़ें कुट्टी से मिले | वे अपने गुणों के कारण दक्षिण के विनोबा के नाम से प्रख्यात हुए | हमेशा दूसरों की सेवा के लिये तत्पर कुट्टी जी के दोनों हाथ पक्षाघात के आक्रमण के कारण खराब हो गये | लोगों ने उनसे सहानुभूति दरसाई | वे बोले -"जहाँ भावनाओं से परिपूर्ण ह्रदय ,सक्रिय सतेज मस्तिष्क हो ,सुद्रढ़ -भार उठाने वाले पैर हों ,वहां क्या कठिनाई है !"
लोगों ने पूछा कि इनसे कैसे सहायता करेंगे ?उनने कहा -"जितनी आवश्यकता आज मनुष्यों को मानसिक सहायता की है ,उतनी और किसी की नहीं | "उनने पद यात्रा आरंभ की | पूरा कर्नाटक ,तमिलनाडु उनने दस वर्षों में पैदल घूम डाला | तमाम तरह की समस्याओं को वे हँसते हुए सुलझा देते | निरंतर सत्साहित्य का वे स्वाध्याय करते | सभी के चिंतन में विधेयात्मकता का समावेश करते | लोगों को लोगों के द्वारा ही आर्थिक सहायता करवा देते ,विद्दालयों के लिये धन एकत्र करा देते | विनोबा ने कुट्टी जी को चलता फिरता विश्वविद्दालय कहा था |
विनोबा भावे अपनी भूदान यात्रा के दौरान दक्षिण भारत में पेनुगोड़ें कुट्टी से मिले | वे अपने गुणों के कारण दक्षिण के विनोबा के नाम से प्रख्यात हुए | हमेशा दूसरों की सेवा के लिये तत्पर कुट्टी जी के दोनों हाथ पक्षाघात के आक्रमण के कारण खराब हो गये | लोगों ने उनसे सहानुभूति दरसाई | वे बोले -"जहाँ भावनाओं से परिपूर्ण ह्रदय ,सक्रिय सतेज मस्तिष्क हो ,सुद्रढ़ -भार उठाने वाले पैर हों ,वहां क्या कठिनाई है !"
लोगों ने पूछा कि इनसे कैसे सहायता करेंगे ?उनने कहा -"जितनी आवश्यकता आज मनुष्यों को मानसिक सहायता की है ,उतनी और किसी की नहीं | "उनने पद यात्रा आरंभ की | पूरा कर्नाटक ,तमिलनाडु उनने दस वर्षों में पैदल घूम डाला | तमाम तरह की समस्याओं को वे हँसते हुए सुलझा देते | निरंतर सत्साहित्य का वे स्वाध्याय करते | सभी के चिंतन में विधेयात्मकता का समावेश करते | लोगों को लोगों के द्वारा ही आर्थिक सहायता करवा देते ,विद्दालयों के लिये धन एकत्र करा देते | विनोबा ने कुट्टी जी को चलता फिरता विश्वविद्दालय कहा था |
No comments:
Post a Comment