'बुद्धिमता एक ही है कि संसार को उसके यथार्थ रूप में देखना और जैसा भी कुछ वह है उससे निपटना | '
'दुःख कैसे घटे '-इस संबंध में सूफी फकीर बायजीद ने बड़ी सुंदर कथा कही है --
उस फकीर ने एक दिन प्रार्थना की,हे मेरे भगवान !मेरे मालिक ! मेरा दुःख किसी और को दे ,मुझे थोड़ा छोटा दुःख दे दो ,मेरे पास बहुत दुःख है | प्रार्थना करते करते उनकी नींद लग गई | उनने स्वप्न देखा कि खुदा मेहरबान है | दुनियाँ के सब लोग आकर उसके पास दुखों की गठरियाँ टांगते चले जा रहें हैं |
भगवान कह रहें हैं ,अपनी गठरियाँ मेरे पास बांध दो और मनचाही दूसरी लेते जाओ | बायजीद मुस्कराए ,सोचा भगवान ने मन की बात सुन ली | अब मैं भी अपनी दुखों की गठरी वहां बाँधकर ,हलके दुखों वाली गठरी ले आता हूँ | सब अपनी अपनी गठरियाँ बदल रहें हैं तो मैं भी क्यों पीछे रहूँ | बायजीद ने आश्चर्य से देखा कि दुनिया में दुःख तो बहुत हैं ,न्यूनतम दुखों वाली गठरी भी उनकी गठरी से दोगुनी थी |
सपने में ही वह भागा कि अपनी गठरी पहले उठा लूँ ,कहीं ऐसा न हो कि मेरे जिम्मे दोगुने दुखों वाली गठरी आ जाये और मेरी गठरी कोई और ले जाये | मांगा तो था मैंने कम दुःख और कोई मुझे अधिक दुःख पकड़ा जाये |
'दुःख कैसे घटे '-इस संबंध में सूफी फकीर बायजीद ने बड़ी सुंदर कथा कही है --
उस फकीर ने एक दिन प्रार्थना की,हे मेरे भगवान !मेरे मालिक ! मेरा दुःख किसी और को दे ,मुझे थोड़ा छोटा दुःख दे दो ,मेरे पास बहुत दुःख है | प्रार्थना करते करते उनकी नींद लग गई | उनने स्वप्न देखा कि खुदा मेहरबान है | दुनियाँ के सब लोग आकर उसके पास दुखों की गठरियाँ टांगते चले जा रहें हैं |
भगवान कह रहें हैं ,अपनी गठरियाँ मेरे पास बांध दो और मनचाही दूसरी लेते जाओ | बायजीद मुस्कराए ,सोचा भगवान ने मन की बात सुन ली | अब मैं भी अपनी दुखों की गठरी वहां बाँधकर ,हलके दुखों वाली गठरी ले आता हूँ | सब अपनी अपनी गठरियाँ बदल रहें हैं तो मैं भी क्यों पीछे रहूँ | बायजीद ने आश्चर्य से देखा कि दुनिया में दुःख तो बहुत हैं ,न्यूनतम दुखों वाली गठरी भी उनकी गठरी से दोगुनी थी |
सपने में ही वह भागा कि अपनी गठरी पहले उठा लूँ ,कहीं ऐसा न हो कि मेरे जिम्मे दोगुने दुखों वाली गठरी आ जाये और मेरी गठरी कोई और ले जाये | मांगा तो था मैंने कम दुःख और कोई मुझे अधिक दुःख पकड़ा जाये |
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