'अंत:करण मनुष्य का सबसे सच्चा मित्र ,नि:स्वार्थ पथप्रदर्शक और वात्सल्यपूर्ण अभिभावक है | वह न कभी धोखा देता है ,न साथ छोड़ता है और न उपेक्षा करता है | पग -पग पर मनुष्य को सजग एवं सचेत बनाता हुआ सही मार्ग पर चलने का प्रयत्न किया करता है | अपने अंत:करण पर विश्वास करके चलने वाले व्यक्ति न कभी पथ भ्रष्ट होते हैं और न किसी आपति में पड़ते हैं | '
याज्ञवल्क्य राजा जनक की सभा में विराजमान थे | जनक ने पूछा -"प्रकाश का स्रोत क्या है और यदि वह न मिले तो किसका आश्रय लिया जाये ?"
याज्ञवल्क्य ने कहा -"सूर्य प्रमुख है ,वह न हो तो चंद्रमा ,चंद्रमा न हो तो दीपक ,दीपक न हो तो विद्वानों से पूछकर प्रकाश प्राप्त करें | "
जनक ने पूछा -"कोई बताने वाला भी न दीखे तब ? याज्ञवल्क्य ने कहा -"तब अपने अंत:विवेक के आधार पर मार्ग अपनायें | सांसारिक प्रकाश न मिलने पर आत्म ज्योति ही यथार्थता बताती है | "
याज्ञवल्क्य राजा जनक की सभा में विराजमान थे | जनक ने पूछा -"प्रकाश का स्रोत क्या है और यदि वह न मिले तो किसका आश्रय लिया जाये ?"
याज्ञवल्क्य ने कहा -"सूर्य प्रमुख है ,वह न हो तो चंद्रमा ,चंद्रमा न हो तो दीपक ,दीपक न हो तो विद्वानों से पूछकर प्रकाश प्राप्त करें | "
जनक ने पूछा -"कोई बताने वाला भी न दीखे तब ? याज्ञवल्क्य ने कहा -"तब अपने अंत:विवेक के आधार पर मार्ग अपनायें | सांसारिक प्रकाश न मिलने पर आत्म ज्योति ही यथार्थता बताती है | "
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