'मन को स्वच्छ ,निर्विकार ,निर्मल बनाना ईश्वर भक्ति का प्रधान प्रतिफल है | मन की मलिनता जिस मात्रा में घटती जाती है ,उसी अनुपात में विवेकशीलता ,दूरदर्शिता बढ़ती जाती है | इस निर्मल बुद्धि को ही ऋतंभरा प्रज्ञा ,भूमा आदि नामों से प्रशंसित किया गया है | '
आचार्य उपकौशल को अपनी पुत्री के लिये योग्य वर की खोज थी | उनके गुरुकुल में कई विद्वान्
ब्रह्मचारी थे ,किंतु वे कन्यादान के लिये ऐसे सत्पात्र की खोज में थे जो विकट से विकट परिस्थितियों में भी आत्मा को प्रताड़ित न करे ,सन्मार्ग से विचलित न हो | परीक्षा के लिये उन्होंने सब ब्रह्मचारियों को गुप्त रूप से आभूषण लाने को कहा ,जिसे माता -पिता क्या ,कोई न जाने |
सब छात्र चोरी से कुछ न कुछ आभूषण लेकर लौटे ,आचार्य ने सारे आभूषण संभालकर रख लिये | अंत में वाराणसी के राजकुमार ब्रह्मदत्त खाली हाथ लौटे | आचार्य ने उनसे पूछा -"क्या तुम्हे एकांत नहीं मिला ?"
ब्रह्मदत्त ने उत्तर दिया -"निर्जनता तो उपलब्ध हुई पर मेरी आत्मा और परमात्मा तो देखते ही थे ,चोरी को ।"
बस आचार्य को सत्पात्र मिल गया ,जिसकी उन्हें खोज थी |
ईश्वर को सर्वत्र विद्दमान देखने वाला कभी अनुचित कार्य नहीं कर सकता |
आचार्य उपकौशल को अपनी पुत्री के लिये योग्य वर की खोज थी | उनके गुरुकुल में कई विद्वान्
ब्रह्मचारी थे ,किंतु वे कन्यादान के लिये ऐसे सत्पात्र की खोज में थे जो विकट से विकट परिस्थितियों में भी आत्मा को प्रताड़ित न करे ,सन्मार्ग से विचलित न हो | परीक्षा के लिये उन्होंने सब ब्रह्मचारियों को गुप्त रूप से आभूषण लाने को कहा ,जिसे माता -पिता क्या ,कोई न जाने |
सब छात्र चोरी से कुछ न कुछ आभूषण लेकर लौटे ,आचार्य ने सारे आभूषण संभालकर रख लिये | अंत में वाराणसी के राजकुमार ब्रह्मदत्त खाली हाथ लौटे | आचार्य ने उनसे पूछा -"क्या तुम्हे एकांत नहीं मिला ?"
ब्रह्मदत्त ने उत्तर दिया -"निर्जनता तो उपलब्ध हुई पर मेरी आत्मा और परमात्मा तो देखते ही थे ,चोरी को ।"
बस आचार्य को सत्पात्र मिल गया ,जिसकी उन्हें खोज थी |
ईश्वर को सर्वत्र विद्दमान देखने वाला कभी अनुचित कार्य नहीं कर सकता |
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