श्री रामकृष्ण परमहंस के चरितामृत द्वारा उनकी लीला को घर-घर पहुँचाने वाले मास्टर महाशय (महेन्द्रनाथ ) दक्षिणेश्वर के समीपस्थ जंगल मार्ग से गंगा में डूबने पहुंचे । तब तक वे रामकृष्णदेव के संपर्क में नहीं आये थे । पत्नी मानसिक रूप से विक्षिप्त थी , नौकरी में भी समस्या थी । सोचा गंगा जी में जाकर आत्महत्या कर लेते हैं । किसी ने पूछा कि रामकृष्ण परमहंस से मिलने जा रहें हैं क्या ? उनने उनके बारे में पूछा और सोचा , पहले उनके दर्शन कर लेते हैं ।
ठाकुर ने देखा , हँसे और बोले --" तू मरने जा रहा था , समस्या जायेंगी नहीं ।" अपनी छाती पर हाथ रखकर बोले -" इसके अंदर जो परमात्मा है , उसकी तो सोच । चिंता मत कर , सब ठीक हो जायेगा । " मास्टर महाशय का मानो कायाकल्प हो गया , परिवर्तन हो गया ।
परिस्थितियां बदलीं । वे गुरु का ही ध्यान करते थे और वे जो करते , बोलते वह सब लिखते जाते । वही बाद में रामकृष्ण वचनामृत , कथामृत , लीलामृत के रूप में प्रकट हुआ ।
आधे से अधिक रामकृष्ण परमहंस के शिष्य उनके पढ़ाए छात्र थे , जिन्हें उन्होंने ठाकुर के बारे में बताया था । लोग उन्हें लड़का भगाने वाला मास्टर कहते थे । ब्रह्मानंद , सरदानंद , रामकृष्णानंद आदि सब उनके ही पढ़ाए बालक थे ।
एक धारणा हो , सही हो , तो उसी पर ध्यान केन्द्रित कर जीवन बदला जा सकता है । यह जीवन आत्मघात के लिये नहीं है ।
ठाकुर ने देखा , हँसे और बोले --" तू मरने जा रहा था , समस्या जायेंगी नहीं ।" अपनी छाती पर हाथ रखकर बोले -" इसके अंदर जो परमात्मा है , उसकी तो सोच । चिंता मत कर , सब ठीक हो जायेगा । " मास्टर महाशय का मानो कायाकल्प हो गया , परिवर्तन हो गया ।
परिस्थितियां बदलीं । वे गुरु का ही ध्यान करते थे और वे जो करते , बोलते वह सब लिखते जाते । वही बाद में रामकृष्ण वचनामृत , कथामृत , लीलामृत के रूप में प्रकट हुआ ।
आधे से अधिक रामकृष्ण परमहंस के शिष्य उनके पढ़ाए छात्र थे , जिन्हें उन्होंने ठाकुर के बारे में बताया था । लोग उन्हें लड़का भगाने वाला मास्टर कहते थे । ब्रह्मानंद , सरदानंद , रामकृष्णानंद आदि सब उनके ही पढ़ाए बालक थे ।
एक धारणा हो , सही हो , तो उसी पर ध्यान केन्द्रित कर जीवन बदला जा सकता है । यह जीवन आत्मघात के लिये नहीं है ।
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