'सुचरित्र मनुष्य वही होता है , जो सत्य , दया , ब्रह्मचर्य , परोपकार आदि व्रतों का यथा योग्य पालन करता है । प्राणों के जाने के समय भी सत्य को नहीं छोड़ता है । स्वयं मरते हुए भी किसी को कष्ट नहीं पहुंचाता है । '
एक बार मगध नरेश ने कौशल प्रदेश पर हमला कर दिया । युद्ध में कौशल नरेश की हार हुई। कौशल नरेश ने मगध के राजा के समक्ष प्रस्ताव रखा कि उनके साथ के 15-20 व्यक्तियों को वे जाने दें , शेष के साथ वे यथोचित व्यवहार करने को स्वतंत्र हैं । मगध नरेश ने इस प्रस्ताव के लिये स्वीकृति दे दी ।
कुछ समय पश्चात कौशल नरेश 20 व्यक्तियों को विदा कर सपरिवार युद्ध बंदी के रूप में मगध के राजा के सामने आकर खड़े हो गये । मगध के राजा ने सोचा था कि कौशल नरेश स्वयं भागेंगे , पर उन्हें सामने खड़ा पाकर वे बड़ा आश्चर्यचकित हुए ।
उन्होंने पूछा--" वे कौन थे , जिनके जीवन की सुरक्षा के लिये आपने स्वयं को बंदी बना लिया।"
कौशल नरेश बोले--" राजन ! वे सभी हमारे राज्य के विद्वान व संत थे । राज्य की पहचान उस राज्य के आदर्शों , मूल्यों , सत्कार्यों व संस्कारों से होती है । मैं भले ही मारा जाऊं , पर इन परम्पराओं को जीवित रखने के लिये उनका जीवित रहना आवश्यक है ।"
मगध नरेश यह सुनकर हतप्रभ रह गये और बोले--" जिस राज्य में धर्म , दया व परोपकार का इतना ऊँचा स्थान है , उस पर आधिपत्य का दुस्साहस मैं कैसे कर सकता हूं ? " उन्होंने कौशल नरेश को ससम्मान मुक्त कर दिया ।
एक बार मगध नरेश ने कौशल प्रदेश पर हमला कर दिया । युद्ध में कौशल नरेश की हार हुई। कौशल नरेश ने मगध के राजा के समक्ष प्रस्ताव रखा कि उनके साथ के 15-20 व्यक्तियों को वे जाने दें , शेष के साथ वे यथोचित व्यवहार करने को स्वतंत्र हैं । मगध नरेश ने इस प्रस्ताव के लिये स्वीकृति दे दी ।
कुछ समय पश्चात कौशल नरेश 20 व्यक्तियों को विदा कर सपरिवार युद्ध बंदी के रूप में मगध के राजा के सामने आकर खड़े हो गये । मगध के राजा ने सोचा था कि कौशल नरेश स्वयं भागेंगे , पर उन्हें सामने खड़ा पाकर वे बड़ा आश्चर्यचकित हुए ।
उन्होंने पूछा--" वे कौन थे , जिनके जीवन की सुरक्षा के लिये आपने स्वयं को बंदी बना लिया।"
कौशल नरेश बोले--" राजन ! वे सभी हमारे राज्य के विद्वान व संत थे । राज्य की पहचान उस राज्य के आदर्शों , मूल्यों , सत्कार्यों व संस्कारों से होती है । मैं भले ही मारा जाऊं , पर इन परम्पराओं को जीवित रखने के लिये उनका जीवित रहना आवश्यक है ।"
मगध नरेश यह सुनकर हतप्रभ रह गये और बोले--" जिस राज्य में धर्म , दया व परोपकार का इतना ऊँचा स्थान है , उस पर आधिपत्य का दुस्साहस मैं कैसे कर सकता हूं ? " उन्होंने कौशल नरेश को ससम्मान मुक्त कर दिया ।
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