'जो बीत गया , यदि वह अनुपयुक्त रहा हो तो भी इतनी गुंजाइश अभी भी है कि शेष का सदुपयोग करके , स्वयं का परिशोधन किया जा सके । '
रेशम के कीड़े अपनी लार से अपना घर बनाते हैं और उसी में जकड़कर मरते रहते हैं ,पर जो चतुर कीड़े होते हैं , वे उस लार से बने घर को काटकर बाहर निकल आते हैं और उड़ जाते हैं ।
मनुष्य अपने लिये बंधन आप अपने अज्ञान से खड़े करता है और उन्ही में जकड़ा सड़ता -मरता रहता है । यदि वह चाहे तो विवेकरूपी मुख से उन्हें काट भी सकता है और रेशम के कीड़े की तरह बंधन मुक्त भी हो सकता है ।
रेशम के कीड़े अपनी लार से अपना घर बनाते हैं और उसी में जकड़कर मरते रहते हैं ,पर जो चतुर कीड़े होते हैं , वे उस लार से बने घर को काटकर बाहर निकल आते हैं और उड़ जाते हैं ।
मनुष्य अपने लिये बंधन आप अपने अज्ञान से खड़े करता है और उन्ही में जकड़ा सड़ता -मरता रहता है । यदि वह चाहे तो विवेकरूपी मुख से उन्हें काट भी सकता है और रेशम के कीड़े की तरह बंधन मुक्त भी हो सकता है ।
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