'सुख के स्थायित्व के लिये यह कहा जा सकता है कि उसे धर्म से उत्पन्न और धर्माभिरक्षित होना चाहिये | '
अधर्म से प्राप्त सुख , अन्याय या अत्याचार का सुख
चोरी या कमजोरी से पाये हुए धन का सुख ,
अपने से निर्बलों ,असहायों को सताकर प्राप्त किया गया सुख ,
न्याय विरुद्ध अधिकार का सुख
धर्म और नीति के विरुद्ध विषय -भोग का सुख -कभी स्थायी नहीं होता |
ऐसा सुख परिणाम में विष से भी अधिक घातक होता है |
अधर्म से प्राप्त सुख , अन्याय या अत्याचार का सुख
चोरी या कमजोरी से पाये हुए धन का सुख ,
अपने से निर्बलों ,असहायों को सताकर प्राप्त किया गया सुख ,
न्याय विरुद्ध अधिकार का सुख
धर्म और नीति के विरुद्ध विषय -भोग का सुख -कभी स्थायी नहीं होता |
ऐसा सुख परिणाम में विष से भी अधिक घातक होता है |
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