' मानसिक शुद्धि पवित्रता और एकाग्रता पर आधारित है | जिसका मन जितना पवित्र और शुद्ध होगा , उसके संकल्प उतने ही बलवान एवं प्रभावशाली होंगे | '
महात्मा रामानुजाचार्य अपनी शारीरिक दुर्बलता के कारण नदी में स्नान करने जाते समय , जाते हुए लोगों का सहारा लेकर जाया करते थे | जाते समय वे ब्राह्मण के कंधे का सहारा लेते और आते समय शूद्र के कंधे पर हाथ रखकर आते | लोगों ने आश्चर्यपूर्वक पूछा --" भगवन ! शूद्र के स्पर्श से तो आप अपवित्र हो जाते हैं , फिर स्नान का क्या महत्व रहा ? "
आचार्य जी मुस्कराए , उन्होंने कहा --" स्नान से मेरी देह मात्र शुद्ध होती है | मन का मैल तो अहंकार है | जब तक मनुष्य में अहंकार शेष है , तब तक उसे मन का मलीन ही कहा जाता है | मैं शूद्र का स्पर्श करके अपने मन की मलीनता स्वच्छ करता हूँ | मैं किसी से बड़ा नहीं , सब मुझसे ही बड़े हैं , शूद्र भी मुझसे श्रेष्ठ है , इसी भावना को स्थिर करने के लिये शूद्र का सहारा लिया करता हूँ | "
उत्तर युक्तियुक्त था , पूछने वाले का समाधान हो गया |
' अभिमान , अहंकार व्यक्ति के व्यक्तित्व और उसके गुणों से ईश्वरीय तत्व को बहिष्कृत कर देता है | अभिमानी और अहंकारी व्यक्ति अपने समस्त गुणों , विशेषताओं एवं विभूतियों के बावजूद दैवी प्रयोजनों के लिये अनुकूल व उपयोगी नहीं रह जाते | "
महात्मा रामानुजाचार्य अपनी शारीरिक दुर्बलता के कारण नदी में स्नान करने जाते समय , जाते हुए लोगों का सहारा लेकर जाया करते थे | जाते समय वे ब्राह्मण के कंधे का सहारा लेते और आते समय शूद्र के कंधे पर हाथ रखकर आते | लोगों ने आश्चर्यपूर्वक पूछा --" भगवन ! शूद्र के स्पर्श से तो आप अपवित्र हो जाते हैं , फिर स्नान का क्या महत्व रहा ? "
आचार्य जी मुस्कराए , उन्होंने कहा --" स्नान से मेरी देह मात्र शुद्ध होती है | मन का मैल तो अहंकार है | जब तक मनुष्य में अहंकार शेष है , तब तक उसे मन का मलीन ही कहा जाता है | मैं शूद्र का स्पर्श करके अपने मन की मलीनता स्वच्छ करता हूँ | मैं किसी से बड़ा नहीं , सब मुझसे ही बड़े हैं , शूद्र भी मुझसे श्रेष्ठ है , इसी भावना को स्थिर करने के लिये शूद्र का सहारा लिया करता हूँ | "
उत्तर युक्तियुक्त था , पूछने वाले का समाधान हो गया |
' अभिमान , अहंकार व्यक्ति के व्यक्तित्व और उसके गुणों से ईश्वरीय तत्व को बहिष्कृत कर देता है | अभिमानी और अहंकारी व्यक्ति अपने समस्त गुणों , विशेषताओं एवं विभूतियों के बावजूद दैवी प्रयोजनों के लिये अनुकूल व उपयोगी नहीं रह जाते | "
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