संत हसन बासरी नदी के किनारे नाव का इंतजार कर रहे थे | हबीब नामक उनका शिष्य आया और बोला --" उस्ताद ! किस चीज का इंतजार कर रहे हैं ? " वे बोले -- " नाव का | " तो वह बोला -- " इसमें क्या बड़ी बात है | अपने दिल से जलन , बैर और सांसारिकता निकाल फेंके , अंत:करण को पवित्र कर लें और खुदा पर यकीन कर नंगे पाँव चले , आसानी से नदी पार कर लेंगे | "
संत ने सोचा मेरा चेला मुझे ही सीख दे रहा है | बोले --" तू कहीं पगला तो नहीं गया | " हबीब कुछ नहीं बोला , नदी में पाँव रखा व चलता चला गया | गुरुदेव देखते रह गये | फिर वह लौटकर आया तो हसन ने पूछा --" मुझसे ही इल्म लेने वाले , आज तूने मुझे इल्म दे दिया | कैसे हुआ यह ? " हबीब बोला --" आपकी सीख सुनकर मैं दिल साफ करता चला गया और उस्ताद ! तुम केवल कागज काले करते रहे | प्रवचन देते रहे | " कहते हैं कि इसके बाद हसन पूरी तरह बदल गये -- सही मायने में पीर बन गये |
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