सुमिरन की बड़ी महिमा है । भाव पूर्ण ह्रदय से भगवान को पुकारना सुमिरन कहलाता है । यह मात्र ओंठों से किया जप नहीं है । लाहिड़ी महाशय के एक गृहस्थ शिष्य थे -नवगोपाल घोष । अक्सर बीमार रहते थे ,पत्नी सेवा करती थी । एक दिन बोले -" भगवान ! हम तो कुछ नहीं कर सकते , लेटे रहते हैं । दवाएँ चल रहीं हैं, पर कोई फायदा नहीं । " लाहिड़ी महाशय बोले -" तुम जहाँ हो , जिस अवस्था में हो , भगवत्स्मरण करो । कराहो भी , पर भगवान न छूटे । "उनने वैसा ही करना शुरू कर दिया । वर्ष भर धैर्य पूर्वक किया । धीरे - धीरे बैठ सकने में सक्षम हो गये , फिर चलने लगे । कष्ट भी क्रमश: मिट गया । व्याधि पूरी तरह चली गई । समाज सेवा भी करने लगे ।
सुमिरन का फल है यह । बिना परिणाम की आशा के सच्चे ह्रदय से भगवान को पुकारें तो वे सुनते अवश्य हैं ।
सुमिरन का फल है यह । बिना परिणाम की आशा के सच्चे ह्रदय से भगवान को पुकारें तो वे सुनते अवश्य हैं ।
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