' सदा धर्म के मार्ग पर चलना चाहिये और सत्कर्म करते रहना चाहिये । '
अधर्म का आचरण करने वाले बड़े-बड़े तपस्वियों का पतन होता है, तांत्रिकों को मुँह की खानी पड़ती है, योगी भी पथभ्रष्ट हो जाता है लेकिन धर्माचरण करने वाले व्यक्ति का कभी अहित नहीं होता ।
कितना भी कष्ट क्यों न उठाना पड़े , हमें धर्म के मार्ग पर डटे रहना चाहिये ।
व्यक्ति को चाहिये सदा सत्कर्म करे । कोई इच्छा-अपेक्षा किये बगैर सत्कर्मों का अंबार लगा देना चाहिये । सत्कर्म का बीज एक दिन उगेगा अवश्य, इसे कोई नहीं रोक सकता ।
हमारा हित इसी में है कि हम अपने जीवन में शुभ कर्म करें, अच्छा सोंचे और अपनी भावनाओं को परिष्कृत करें, ताकि इनकी पहुँच इतनी ऊपर हो कि वे परमपिता परमेश्वर का किंचित् मात्र स्पर्श पा सकें । ऐसा करने पर ही हम ईश्वरीय अनुदान के अधिकारी बन पायेंगे ।
अधर्म का आचरण करने वाले बड़े-बड़े तपस्वियों का पतन होता है, तांत्रिकों को मुँह की खानी पड़ती है, योगी भी पथभ्रष्ट हो जाता है लेकिन धर्माचरण करने वाले व्यक्ति का कभी अहित नहीं होता ।
कितना भी कष्ट क्यों न उठाना पड़े , हमें धर्म के मार्ग पर डटे रहना चाहिये ।
व्यक्ति को चाहिये सदा सत्कर्म करे । कोई इच्छा-अपेक्षा किये बगैर सत्कर्मों का अंबार लगा देना चाहिये । सत्कर्म का बीज एक दिन उगेगा अवश्य, इसे कोई नहीं रोक सकता ।
हमारा हित इसी में है कि हम अपने जीवन में शुभ कर्म करें, अच्छा सोंचे और अपनी भावनाओं को परिष्कृत करें, ताकि इनकी पहुँच इतनी ऊपर हो कि वे परमपिता परमेश्वर का किंचित् मात्र स्पर्श पा सकें । ऐसा करने पर ही हम ईश्वरीय अनुदान के अधिकारी बन पायेंगे ।
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