' जो समस्त प्राणियों में मैत्री का भाव रखता है और सबका हित चिंतन करता है वही सच्चा अध्यात्मवेता है |
समस्त मनुष्यों को बिना किसी भेदभाव के ज्ञान का प्रकाश बाँटना, श्रेष्ठ व सकारात्मक विचारों का प्रसार करना, अपमान, तिरस्कार, उपेक्षा को प्रीतिपूर्वक सहन करते हुए कर्तव्य कर्म में व्यस्त रहना-- इसी में जीवन का रहस्य है ।
सच्ची साधना अहं का उन्मूलन है । सच्ची साधना क्रिया में नहीं विचारों एवं भावनाओं में निहित है । विचार और भावनाओं की दिशा बदल जाये, तो सामान्य क्रिया भी अध्यात्मप्रदायिनी हो जाती है ।
हमें अपनी समस्त ऊर्जा किसी क्रिया विशेष को करने में नहीं बल्कि विचारों और भावनाओं के परिष्कार में नियोजित करनी चाहिये । यह आत्मपरिष्कार ही हमारी साधना, गुरुभक्ति, ईश्वरभक्ति है, यही अध्यात्म तत्व है जिसके फलस्वरूप ईश्वरकृपा का प्रसाद प्राप्त होता है ।
समस्त मनुष्यों को बिना किसी भेदभाव के ज्ञान का प्रकाश बाँटना, श्रेष्ठ व सकारात्मक विचारों का प्रसार करना, अपमान, तिरस्कार, उपेक्षा को प्रीतिपूर्वक सहन करते हुए कर्तव्य कर्म में व्यस्त रहना-- इसी में जीवन का रहस्य है ।
सच्ची साधना अहं का उन्मूलन है । सच्ची साधना क्रिया में नहीं विचारों एवं भावनाओं में निहित है । विचार और भावनाओं की दिशा बदल जाये, तो सामान्य क्रिया भी अध्यात्मप्रदायिनी हो जाती है ।
हमें अपनी समस्त ऊर्जा किसी क्रिया विशेष को करने में नहीं बल्कि विचारों और भावनाओं के परिष्कार में नियोजित करनी चाहिये । यह आत्मपरिष्कार ही हमारी साधना, गुरुभक्ति, ईश्वरभक्ति है, यही अध्यात्म तत्व है जिसके फलस्वरूप ईश्वरकृपा का प्रसाद प्राप्त होता है ।
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