' ईश्वर को जीवन का सहचर बना लेने से मंजिल इतनी मंगलमय हो जाती है कि यह धरती ही ईश्वर के लोक स्वर्ग जैसी आनंदयुक्त प्रतीत होने लगती है |'
जिंदगी को ठीक तरह जीने के लिये एक ऐसे साथी की आवश्यकता होती है जो पूरे रास्ते हमारे साथ रहे, रास्ता बतावे, प्यार करे , सलाह दे और सहायता की शक्ति तथा भावना दोनों से ही संपन्न हो । ऐसा साथी मिल जाने पर जिंदगी की लम्बी मंजिल बड़ी हँसी-खुशी और सुविधा के साथ पूरी हो जाती है ।
ऐसा सबसे उपयुक्त साथी जो निरंतर मित्र, सखा, सेवक, गुरु , सहायक की तरह हर एक घड़ी प्रस्तुत रहे और बदले में कुछ भी प्रत्युपकार न मांगे----- ऐसा केवल ईश्वर ही हो सकता है ।
जिसे ईश्वर पर विश्वास है वह सदा यही अनुभव करेगा कि कोई बड़ी शक्ति मेरे साथ है । जहाँ अपना बल थकेगा वहां उसका बल मिलेगा । जहाँ अपने साधन कम पड़ रहें होंगे वहां उसके साधन उपलब्ध होंगे । इस संसार में क्षण-क्षण पर प्राणघातक संकट और आपत्तियों के स्थल मौजूद हैं , जो उनसे अब तक हमारी रक्षा करता रहा वह आगे भी करेगा ।
अंतरात्मा में बैठा हुआ ईश्वर उचित और अनुचित की, कर्तव्य और अकर्तव्य की प्रेरणा निरंतर देता रहता है । जो इसे सुनेगा उसका महत्व समझेगा और सम्मान करेगा उसे सीधे रास्ते चलने में कोई कठिनाई नहीं होगी और जो सीधे रास्ते चलता है , यश, प्रतिष्ठा और सम्मान उसके पीछे चलते हैं ।
जैसे-जैसे ईश्वर विश्वास बढ़ता है वैसे ही मनुष्य में निर्भयता, आत्मविश्वास, आशा, धैर्य, कर्तव्यपरायणता, सदाचार, संतोष व आनंद जैसे सद्गुण बढ़ते जाते हैं । जीवन की सार्थकता और सफलता इन्ही गुणों पर निर्भर है ।
जिंदगी को ठीक तरह जीने के लिये एक ऐसे साथी की आवश्यकता होती है जो पूरे रास्ते हमारे साथ रहे, रास्ता बतावे, प्यार करे , सलाह दे और सहायता की शक्ति तथा भावना दोनों से ही संपन्न हो । ऐसा साथी मिल जाने पर जिंदगी की लम्बी मंजिल बड़ी हँसी-खुशी और सुविधा के साथ पूरी हो जाती है ।
ऐसा सबसे उपयुक्त साथी जो निरंतर मित्र, सखा, सेवक, गुरु , सहायक की तरह हर एक घड़ी प्रस्तुत रहे और बदले में कुछ भी प्रत्युपकार न मांगे----- ऐसा केवल ईश्वर ही हो सकता है ।
जिसे ईश्वर पर विश्वास है वह सदा यही अनुभव करेगा कि कोई बड़ी शक्ति मेरे साथ है । जहाँ अपना बल थकेगा वहां उसका बल मिलेगा । जहाँ अपने साधन कम पड़ रहें होंगे वहां उसके साधन उपलब्ध होंगे । इस संसार में क्षण-क्षण पर प्राणघातक संकट और आपत्तियों के स्थल मौजूद हैं , जो उनसे अब तक हमारी रक्षा करता रहा वह आगे भी करेगा ।
अंतरात्मा में बैठा हुआ ईश्वर उचित और अनुचित की, कर्तव्य और अकर्तव्य की प्रेरणा निरंतर देता रहता है । जो इसे सुनेगा उसका महत्व समझेगा और सम्मान करेगा उसे सीधे रास्ते चलने में कोई कठिनाई नहीं होगी और जो सीधे रास्ते चलता है , यश, प्रतिष्ठा और सम्मान उसके पीछे चलते हैं ।
जैसे-जैसे ईश्वर विश्वास बढ़ता है वैसे ही मनुष्य में निर्भयता, आत्मविश्वास, आशा, धैर्य, कर्तव्यपरायणता, सदाचार, संतोष व आनंद जैसे सद्गुण बढ़ते जाते हैं । जीवन की सार्थकता और सफलता इन्ही गुणों पर निर्भर है ।
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