धर्म का अर्थ है---कर्तव्यपरायणता । ऐसी कर्तव्यपरायणता जो मनुष्य को व्यक्तिगत संकीर्ण दायरे से निकालती है तथा समष्टि की ओर चलने, उससे बंधने की प्रेरणा देती है ।
आचरण की श्रेष्ठता, विचारों की उत्कृष्टता तथा भावनाओं की पवित्रता ही धर्म का व्यवहारिक लक्ष्य है । धर्म को समाज के स्थायित्व की धुरी कहा गया है, जिसके धारण किये जाने से समाज की सारे समूह की रक्षा होती है । जीवन का कोई भी पक्ष ऐसा नहीं है जो धर्म के अंतर्गत न आता हो । ऐसी कोई चीज हैभी विद्दा नहीं, जहाँ धार्मिकता, कर्तव्यपरायणता,उच्चस्तरीय आदर्शवादिता की आवश्यकता न हो ।
धर्म अपने शाश्वत रूप में हर समय के लिये, हर समाज के लिये अनिवार्य है, प्रगति का मूल आधार है । उसकी उपेक्षा कभी भी नहीं की जानी चाहिये ।
एक बार साम्यवादी विचारधारा के पाश्चात्य विद्वान महात्मा गाँधी के पास जाकर बोले--" महात्मा जी ! जब संसार में इतना छल-कपट, अशांति और खून-खराबा चल रहा है, तब भी आप धर्म की बात करते हैं । बुराइयाँ और रक्तपात जितनी तेजी से बढ़ रहें हैं, उसे देखते हुए धर्म निहायत बेकार चीज है । "
बापू ने कहा---" महोदय ! जरा सोचिये तो सही कि जब धर्म की इतनी मान्यता रहते हुए लोग इतनी अशांति फैलाये हुए हैं, तो उसके न रहने पर यह कल्पना सहज ही की जा सकती है कि तब संसार की क्या दशा होगी ? " इस पर उन सज्जन से कोई जवाब देते नहीं बना ।
आचरण की श्रेष्ठता, विचारों की उत्कृष्टता तथा भावनाओं की पवित्रता ही धर्म का व्यवहारिक लक्ष्य है । धर्म को समाज के स्थायित्व की धुरी कहा गया है, जिसके धारण किये जाने से समाज की सारे समूह की रक्षा होती है । जीवन का कोई भी पक्ष ऐसा नहीं है जो धर्म के अंतर्गत न आता हो । ऐसी कोई चीज हैभी विद्दा नहीं, जहाँ धार्मिकता, कर्तव्यपरायणता,उच्चस्तरीय आदर्शवादिता की आवश्यकता न हो ।
धर्म अपने शाश्वत रूप में हर समय के लिये, हर समाज के लिये अनिवार्य है, प्रगति का मूल आधार है । उसकी उपेक्षा कभी भी नहीं की जानी चाहिये ।
एक बार साम्यवादी विचारधारा के पाश्चात्य विद्वान महात्मा गाँधी के पास जाकर बोले--" महात्मा जी ! जब संसार में इतना छल-कपट, अशांति और खून-खराबा चल रहा है, तब भी आप धर्म की बात करते हैं । बुराइयाँ और रक्तपात जितनी तेजी से बढ़ रहें हैं, उसे देखते हुए धर्म निहायत बेकार चीज है । "
बापू ने कहा---" महोदय ! जरा सोचिये तो सही कि जब धर्म की इतनी मान्यता रहते हुए लोग इतनी अशांति फैलाये हुए हैं, तो उसके न रहने पर यह कल्पना सहज ही की जा सकती है कि तब संसार की क्या दशा होगी ? " इस पर उन सज्जन से कोई जवाब देते नहीं बना ।
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