' हँसी-खुशी तो उसी की स्थायी और सुरक्षित रह पाती है, जो अपने साथ दूसरों को भी उसमे भागीदार बनाकर मंगल मनाया करता है | '
एक धनिक व्यक्ति बड़ा कंजूस था । उसने भिखारियों को कुछ भी नहीं देने की हिदायत घर के सभी सदस्यों को दे रखी थी । एक दिन एक अपंग आकर भीख मांगने लगा । उसकी नव-विवाहिता पुत्रवधु किसी उत्तम परिवार से आई थी, उससे बोली कि देने के लिये कुछ भी नहीं है ।
भिखारी ने पूछा---" फिर खाते क्या हो ? "तो उसने जवाब दिया--" वासी-कूसी खा लेते हैं और वह भी समाप्त हो जायेगा तो हम भी तुम्हारी तरह भीख मांगेंगे । "
सेठ सारा वार्तालाप ऊपर बैठा सुन रहा था ।
एक धनिक व्यक्ति बड़ा कंजूस था । उसने भिखारियों को कुछ भी नहीं देने की हिदायत घर के सभी सदस्यों को दे रखी थी । एक दिन एक अपंग आकर भीख मांगने लगा । उसकी नव-विवाहिता पुत्रवधु किसी उत्तम परिवार से आई थी, उससे बोली कि देने के लिये कुछ भी नहीं है ।
भिखारी ने पूछा---" फिर खाते क्या हो ? "तो उसने जवाब दिया--" वासी-कूसी खा लेते हैं और वह भी समाप्त हो जायेगा तो हम भी तुम्हारी तरह भीख मांगेंगे । "
सेठ सारा वार्तालाप ऊपर बैठा सुन रहा था ।
वह नाराज हुआ तो पुत्रवधु ने समझाया कि जो कुछ हमने पूर्व जन्म के सत्कर्मों के प्रतिफल स्वरुप पाया है,उसका उपभोग इस जन्म में कर रहें हैं । अब हम लोगों में त्याग परमार्थ नहीं होने से पिछली कमाई चुकते ही हमें भी भिखारी की तरह दरिद्र बन जाना पड़ेगा । "
बात सेठ की समझ में आ गई और वह परमार्थ कार्यों में अपना धन व समय लगाने लगा ।
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