यदि हमारे अंदर की प्रकृति दैवी है तो सद्गुण विकसित होंगे । यदि अंदर तमस है तो विकसित होंगे दुर्गुण । जैसी प्रकृति होती है वैसी ही उत्पति होती है । भूमि की विशेषता होती है तो नागपुर का संतरा, भुसावल का केला, बलसाड़ का चीकू अपनी खासियत लिये पैदा होता है । जो बीज जहाँ उगते हैं, वहीँ पूरी तरह उगेंगे ।
हम अपनी अंदर की भूमि को सद्गुण ग्रहण करने के लिये उर्वर बना लें तो वहां भी उनके विकसित होने की स्थिति बन जायेगी । सतत अभ्यास , ईश्वर का निरंतर स्मरण और अनन्य भाव से ईश्वर के प्रति समर्पण हमारी अंत:प्रवृति को सतत सतोगुण की ओर ले जाते हैं ।
हम निरंतर अनन्य भाव से ईश्वर का स्मरण करें, अपनी संपूर्ण भावनाएं भगवान के लिये अर्पित करें , इससे हमारे भीतर सात्विकता का विकास होगा और हमारी प्रवृति निर्मल होती जायेगी ।
भोग तो अनिवार्य होते हैं । सात्विक व्यक्ति उन्हें अनिवार्य मानकर खुशी-खुशी झेल लेता है, पर शेष भाग्य को, परिस्थितियों को गाली देते रहते हैं ।
' गुणों का ऐश्वर्य ही व्यक्ति को महान बनाता है । '
हम अपनी अंदर की भूमि को सद्गुण ग्रहण करने के लिये उर्वर बना लें तो वहां भी उनके विकसित होने की स्थिति बन जायेगी । सतत अभ्यास , ईश्वर का निरंतर स्मरण और अनन्य भाव से ईश्वर के प्रति समर्पण हमारी अंत:प्रवृति को सतत सतोगुण की ओर ले जाते हैं ।
हम निरंतर अनन्य भाव से ईश्वर का स्मरण करें, अपनी संपूर्ण भावनाएं भगवान के लिये अर्पित करें , इससे हमारे भीतर सात्विकता का विकास होगा और हमारी प्रवृति निर्मल होती जायेगी ।
भोग तो अनिवार्य होते हैं । सात्विक व्यक्ति उन्हें अनिवार्य मानकर खुशी-खुशी झेल लेता है, पर शेष भाग्य को, परिस्थितियों को गाली देते रहते हैं ।
' गुणों का ऐश्वर्य ही व्यक्ति को महान बनाता है । '
No comments:
Post a Comment