ईसामसीह ने उस दिन का प्रवचन यों आरंभ किया--- " एक किसान ने जौ बोये । कुछ दाने पगडंडी पर गिरे उन्हें तुरंत चिड़िया चुग गई । कुछ गिरे पथरीली भूमि पर, जहाँ मिट्टी की परत बहुत पतली थी, ये बीज अंकुरित तो हुए, पर धूप में जल्दी झुलस भी गये, क्योंकि उनकी जड़ें गहरी न थीं । कुछ दाने कँटीली झाड़ी में गिरे, जहाँ काँटों ने उनके अंकुरों को दबा डाला ।
कुछ भाग्यवान अच्छी मिट्टी में गिरे, अंकुरित, पल्लवित पुष्पित हुए ! समझे ? " फिर उन्होंने रूपक का यों वर्णन किया कि धर्म वचनों की गति भी जौ के इन दानो जैसी होती है और केवल संस्कारवान आत्मभूमि में पड़ा धर्म वचन फल देता है ।
कुछ भाग्यवान अच्छी मिट्टी में गिरे, अंकुरित, पल्लवित पुष्पित हुए ! समझे ? " फिर उन्होंने रूपक का यों वर्णन किया कि धर्म वचनों की गति भी जौ के इन दानो जैसी होती है और केवल संस्कारवान आत्मभूमि में पड़ा धर्म वचन फल देता है ।
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