महर्षि पिप्पलाद अपने शिष्यों को प्राण की महिमा समझा रहे थे कि प्राण ही जीवन है | यह जीवन रूपी पहिये की नाभि है | जैसे मधुमक्खियों में रानी मक्खी के उड़ जाने पर अन्य सारी मक्खियाँ भी उड़ जाती हैं उसी प्रकार प्राण के विचलित होने पर दूसरी इंद्रियों का अस्थिर होना स्वाभाविक है |
प्राण की महिमा को जानकर शिष्य ने महर्षि से कहा---" हम उस विज्ञान एवं विधान को जानना चाहते हैं जिसके आचरण, अनुकरण एवं प्रयोग से प्राणों को नियंत्रित एवं संयमित किया जा सके और जिसके द्वारा असीमित ऊर्जा का प्रखर प्राण भंडार स्वयं में संजोया जा सके । "
महर्षि ने कहा--" वत्स ! गायत्री विद्दा ही प्राणविद्दा है , 24 अक्षरों वाले गायत्री महामंत्र में प्राणविद्दा का समस्त विज्ञान-विधान निहित है । गायत्री मंत्र के उपास्य सविता देव हैं जिनकी प्रचंड ऊर्जा प्रखर प्राणचेतना बनकर समूचे ब्रह्मांड में संव्याप्त रहती है । यह 24 अक्षरों वाला मंत्र सविता देवता का शब्द रूप है । वाणी से इसका जप, मन से इसका अर्थ एवं ह्रदय से सविता देव के प्रति पूर्णत: समर्पित होकर उनका ध्यान करते ही स्रष्टि में संव्याप्त वैश्व प्राणचेतना जीवन से एकाकार हो जाती है और अनंत अनुभूतियों एवं असीमित उपलब्धियों का भंडार अपने आप ही मानव चेतना में समाता चला जाता है । "
गायत्री महामंत्र ही स्रष्टि एवं जीवन का सार है ।
प्राण की महिमा को जानकर शिष्य ने महर्षि से कहा---" हम उस विज्ञान एवं विधान को जानना चाहते हैं जिसके आचरण, अनुकरण एवं प्रयोग से प्राणों को नियंत्रित एवं संयमित किया जा सके और जिसके द्वारा असीमित ऊर्जा का प्रखर प्राण भंडार स्वयं में संजोया जा सके । "
महर्षि ने कहा--" वत्स ! गायत्री विद्दा ही प्राणविद्दा है , 24 अक्षरों वाले गायत्री महामंत्र में प्राणविद्दा का समस्त विज्ञान-विधान निहित है । गायत्री मंत्र के उपास्य सविता देव हैं जिनकी प्रचंड ऊर्जा प्रखर प्राणचेतना बनकर समूचे ब्रह्मांड में संव्याप्त रहती है । यह 24 अक्षरों वाला मंत्र सविता देवता का शब्द रूप है । वाणी से इसका जप, मन से इसका अर्थ एवं ह्रदय से सविता देव के प्रति पूर्णत: समर्पित होकर उनका ध्यान करते ही स्रष्टि में संव्याप्त वैश्व प्राणचेतना जीवन से एकाकार हो जाती है और अनंत अनुभूतियों एवं असीमित उपलब्धियों का भंडार अपने आप ही मानव चेतना में समाता चला जाता है । "
गायत्री महामंत्र ही स्रष्टि एवं जीवन का सार है ।
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