' मन में परमात्मा बस जाये तो परिवर्तन, एक महाक्रांति संभव है । '
यह संसार भी एक बाजार है । इसमें गंदगी भी फूल बनकर महकती है । यहाँ हजार तरह के सामान हैं, जो बिकाऊ हैं । अभिमानवश, लालचवश, अहंकार के कारण हम चीजों को---सांसारिक पदार्थों को अनधिकार चेष्टा से पाना चाहते हैं, आकर्षण हमें लुभाता है, विवेक हमसे दूर चला जाता है तो हमसे गलतियाँ हो जाती हैं ।
यदि कोई अपने भूतकाल को देखे, अपनी की हुई गलतियों पर पश्चाताप करे, अपनी अपूर्णताओं पर चिंतन न कर , आत्मविश्वास दृढ़ कर फिर से नई डगर पर चलने का प्रयास करे तो उसके लिये सारे मार्ग खुले हैं ।
मनुष्य दिव्यता का समुच्चय है, दुर्बलताओं से निराश नहीं होना है | गलतियाँ हुईं, कोई बात नहीं, अब नये सिरे से उठकर खड़े हो जाओ, परमात्मा से जुड़ जाओ, अनन्यता विकसित कर लो, तुम्हारे लिये भी प्रगति के द्वार खुले हैं |
एक डाकू फकीरों के----दरवेशों के वेश में डाके डालता था | अपना हिस्सा वह गरीबों में बाँट देता था | हाथ में माला लिये जपता रहता | एक बार उसके दल ने एक काफिला लूटा | एक व्यापारी के पास ढेर सारा धन था | लूट चल रही थी | उसने फकीर को देखा, उसके पास सारा धन लाकर रख दिया | काफिला लुट जाने के बाद जब वह धन लेने पहुंचा तो देखा कि वहां तो लूट का माल बाँटा जा रहा है | सरदार वही था, जो दरवेश बना हुआ था |उसी के पास व्यापारी का धन था |
व्यापारी बोला--" हमने तो आपको दरवेश समझा था, आप तो कुछ और ही निकले | हमने डाकुओं के सरदार पर नहीं, खुदा के बंदे पर विश्वास किया था | आदमी का भरोसा साधु, फकीर पर से उठना नहीं चाहिये | यह धन आप रखिये, पर आपसे एक गुजारिश है कि आप दरवेश के वेश में मत लूटिये | नहीं तो लोगों का विश्वास ही इस वेश पर से उठ जायेगा | वह डाकू तत्काल ही वास्तव में फकीर बन गया | उसके बाद उसने कभी डाका नहीं डाला |
' दुराचारी भी सन्मार्ग मिलने पर कल्याण पा जाता है | '
यह संसार भी एक बाजार है । इसमें गंदगी भी फूल बनकर महकती है । यहाँ हजार तरह के सामान हैं, जो बिकाऊ हैं । अभिमानवश, लालचवश, अहंकार के कारण हम चीजों को---सांसारिक पदार्थों को अनधिकार चेष्टा से पाना चाहते हैं, आकर्षण हमें लुभाता है, विवेक हमसे दूर चला जाता है तो हमसे गलतियाँ हो जाती हैं ।
यदि कोई अपने भूतकाल को देखे, अपनी की हुई गलतियों पर पश्चाताप करे, अपनी अपूर्णताओं पर चिंतन न कर , आत्मविश्वास दृढ़ कर फिर से नई डगर पर चलने का प्रयास करे तो उसके लिये सारे मार्ग खुले हैं ।
मनुष्य दिव्यता का समुच्चय है, दुर्बलताओं से निराश नहीं होना है | गलतियाँ हुईं, कोई बात नहीं, अब नये सिरे से उठकर खड़े हो जाओ, परमात्मा से जुड़ जाओ, अनन्यता विकसित कर लो, तुम्हारे लिये भी प्रगति के द्वार खुले हैं |
एक डाकू फकीरों के----दरवेशों के वेश में डाके डालता था | अपना हिस्सा वह गरीबों में बाँट देता था | हाथ में माला लिये जपता रहता | एक बार उसके दल ने एक काफिला लूटा | एक व्यापारी के पास ढेर सारा धन था | लूट चल रही थी | उसने फकीर को देखा, उसके पास सारा धन लाकर रख दिया | काफिला लुट जाने के बाद जब वह धन लेने पहुंचा तो देखा कि वहां तो लूट का माल बाँटा जा रहा है | सरदार वही था, जो दरवेश बना हुआ था |उसी के पास व्यापारी का धन था |
व्यापारी बोला--" हमने तो आपको दरवेश समझा था, आप तो कुछ और ही निकले | हमने डाकुओं के सरदार पर नहीं, खुदा के बंदे पर विश्वास किया था | आदमी का भरोसा साधु, फकीर पर से उठना नहीं चाहिये | यह धन आप रखिये, पर आपसे एक गुजारिश है कि आप दरवेश के वेश में मत लूटिये | नहीं तो लोगों का विश्वास ही इस वेश पर से उठ जायेगा | वह डाकू तत्काल ही वास्तव में फकीर बन गया | उसके बाद उसने कभी डाका नहीं डाला |
' दुराचारी भी सन्मार्ग मिलने पर कल्याण पा जाता है | '
No comments:
Post a Comment