मुसलिम हदीसों में संतों में फजील बिन अयाज का नाम आता है | उनकी शुरुआत डाके डालने से हुई, लेकिन वे नमाज पढ़ते रहे | उनके जीवन में एक मोड़ आया और वे बदल गये । सच्चे अर्थों में संत बन गये । एक दिन खलीफा हारूँ अलरशीद उनसे मिलने आये और नसीहत की प्रार्थना की । उन्होंने जो नसीहतें दीं, वे जानने योग्य हैं ।
उन्होंने कहा--- " एक दिन मैंने अल्लाह से प्रार्थना की कि मुझे सरदार बना दे । उन्होंने मुझे इंद्रियों का सरदार बना दिया ।
एक दिन अल्लाह से मैंने कहा---" मुझे नजात ( मुक्ति ) चाहिये । '
अल्लाह ने कहा-- " बूढ़ों की सेवा कर, बच्चों, जवानों के साथ नेकी कर । ' मैंने वही किया और नजात पा गया ।
अल्लाह ने कहा-- " मुझसे डर और मेरे दरबार में हाजिरी देने के लिये तैयार रह । ' मैंने उस दिन से वही किया ।
खलीफा इसके बाद कुछ धन देने के लिये उठे तो संत बोले--- " मुझे दोजख ( नरक ) में डालने का इरादा है क्या ?
खलीफा उनके पास से जीवन की सबसे कीमती दौलत -- ' जीवन- विद्दा लेकर गये ।
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