हमारे मन का हर समय शांत स्थिति में होना परम तप कहा गया है | मन की शांति, अंत:करण की शांति आज की परम आवश्यकता है | उसकी तलाश लोग बाहर करते हैं, जबकि वह अंदर ही है |
आज सारा समाज एक अंधी दौड़ में भागा चला जा रहा है | किसी भी व्यक्ति को यह नहीं मालुम कि उसके लिये सच्चा लाभ देने वाला सौदा क्या है ? भौतिक सुखों की प्राप्ति, ऐशो आराम, इंद्रियजन्य भोग, इन्ही में उलझकर अच्छे-अच्छे प्रतिभावान अपने जीवन के मूल लक्ष्य को भूल जाते हैं | सारी व्याधियां हमारी कभी न समाप्त होने वाली ग्रीड से पनपी हैं |
ईश्वर हमें सद्बुद्धि दे ! हम सबसे बड़ा लाभ अपने इस जीवन का वही माने, जिसमे हमें परमात्मा की कृपा मिल जाये, हम उनकी शरणागति में आ जायें | यदि ऐसा हो गया तो हमें संसार का सबसे बड़ा लाभ मिल गया | वह है------शांति, संतोष, उल्लास, विधेयात्मकता |
वैकुंठ में बड़ी भीड़ थी | विष्णु भगवान आसन पर विराजमान सभी प्राणियों को त्रिलोक की संपदा वितरित कर रहे थे | उन्होंने संकल्प किया था कि आज किसी को खाली हाथ नहीं जाने देंगे |
धन-रत्न, पुत्र-पौत्र, सुख-स्वास्थ्य, वैभव-विलास मांगने वालों का ताँता नहीं टूट रह था |
वैकुंठ का कोश रिक्त होते देख महालक्ष्मी दौड़ी आयीं और पति का हाथ पकड़ कर बोलीं--" यदि इसी प्रकार आप मुक्त हस्त से संपदा लुटाते रहे तो वैकुंठ में कुछ भी शेष नहीं रहेगा | तब हम क्या करेंगे ? " महाविष्णु मंद-मंद हँसे और बोले " देवी ! मैंने सारी संपदा तो नहीं दी | एक निधि ऐसी है जिसे नर, किन्नर, गंधर्व, विद्दाधर एवं असुर में से किसी ने भी नहीं माँगा | "
" कौन सी निधि ? "महालक्ष्मी ने पूछा |
विष्णु जी बोले-- " शांति | आज उसे कोई नहीं माँगता | ये प्राणी भूल गये हैं कि शांति के बिना कोई भी संपदा उनके पास नहीं रह सकेगी | उन्होंने जो माँगा वह मैंने उन्हें दे दिया |
आज सारा समाज एक अंधी दौड़ में भागा चला जा रहा है | किसी भी व्यक्ति को यह नहीं मालुम कि उसके लिये सच्चा लाभ देने वाला सौदा क्या है ? भौतिक सुखों की प्राप्ति, ऐशो आराम, इंद्रियजन्य भोग, इन्ही में उलझकर अच्छे-अच्छे प्रतिभावान अपने जीवन के मूल लक्ष्य को भूल जाते हैं | सारी व्याधियां हमारी कभी न समाप्त होने वाली ग्रीड से पनपी हैं |
ईश्वर हमें सद्बुद्धि दे ! हम सबसे बड़ा लाभ अपने इस जीवन का वही माने, जिसमे हमें परमात्मा की कृपा मिल जाये, हम उनकी शरणागति में आ जायें | यदि ऐसा हो गया तो हमें संसार का सबसे बड़ा लाभ मिल गया | वह है------शांति, संतोष, उल्लास, विधेयात्मकता |
वैकुंठ में बड़ी भीड़ थी | विष्णु भगवान आसन पर विराजमान सभी प्राणियों को त्रिलोक की संपदा वितरित कर रहे थे | उन्होंने संकल्प किया था कि आज किसी को खाली हाथ नहीं जाने देंगे |
धन-रत्न, पुत्र-पौत्र, सुख-स्वास्थ्य, वैभव-विलास मांगने वालों का ताँता नहीं टूट रह था |
वैकुंठ का कोश रिक्त होते देख महालक्ष्मी दौड़ी आयीं और पति का हाथ पकड़ कर बोलीं--" यदि इसी प्रकार आप मुक्त हस्त से संपदा लुटाते रहे तो वैकुंठ में कुछ भी शेष नहीं रहेगा | तब हम क्या करेंगे ? " महाविष्णु मंद-मंद हँसे और बोले " देवी ! मैंने सारी संपदा तो नहीं दी | एक निधि ऐसी है जिसे नर, किन्नर, गंधर्व, विद्दाधर एवं असुर में से किसी ने भी नहीं माँगा | "
" कौन सी निधि ? "महालक्ष्मी ने पूछा |
विष्णु जी बोले-- " शांति | आज उसे कोई नहीं माँगता | ये प्राणी भूल गये हैं कि शांति के बिना कोई भी संपदा उनके पास नहीं रह सकेगी | उन्होंने जो माँगा वह मैंने उन्हें दे दिया |
very true ....
ReplyDelete