भगवान तथागत के उपदेशों का सार यही है कि आध्यात्मिक जीवन का प्रारम्भ भले ही अनुभवों के संकलन एवं विश्लेषण से हो, पर इस यात्रा का चरम स्वयं के अनुभव में होना चाहिये |
भिक्षु विनायक को प्रवचन करने की आदत पड़ गई | विद्वान थे, विषय की जानकारी थी । अत: सड़क पर खड़े होकर लोगों को पकड़ते और उन्हें विभिन्न विषयों पर प्रवचन दिया करते । लोग त्रस्त होने लगे । कुछ ने तथागत से उनके व्यवहार की शिकायत की ।
तथागत ने विनायक को मिलने बुलाया और उनसे पूछा-- : भंते ! यदि कोई मार्ग में खड़ा होकर गायें गिनने लगे तो क्या वो उनका स्वामी बन जायेगा ? '
विनायक ने उत्तर दिया-- " नहीं भगवान ! "
तथागत ने कहा-- " पुत्र ! प्रवचन सदा ही दूसरों के वचन हैं । एकत्र की हुई जानकारियाँ सूचना मात्र होती हैं, ज्ञान नहीं । अनुभव से निकला हुआ ज्ञान स्वयं को प्रकाशित करता है और जगत को आलोकित । तुम पहले स्वयं को प्रकाश पहुँचाओ, फिर ज्ञान स्वयं ही तुम्हारे माध्यम से प्रवाहित होने लगेगा ।
' अपनी आँखे न हों तो करोड़ों सूर्य मिलकर भी जीवन का अँधियारा नहीं मिटा सकते । '
No comments:
Post a Comment