अर्जुन महाभारत के महासमर से भागना व बचना चाहते थे | भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें समझाया-- ऐसा करके तुम कहीं भी चैन से न बैठ सकोगे । पाप को हम न मारें, अधर्म, अनीति का संहार हम न करें, तो निर्विरोध स्थिति पाकर ये पाप, अधर्म, अनीति हमें, हमारी सामाजिक व्यवस्था को मार डालेंगे ।
समझाने और सज्जनता तथा प्रेम से सुधार की नीति हमेशा सफल नहीं होती । दुष्टता को भय की भाषा ही समझ में आती है । नीतिशास्त्र में भी साम की तरह दंड को भी औचित्य की ही संज्ञा दी गई है ।
दुष्प्रवृतियों और दुष्टों के संहारक हैं-- भगवान श्रीहरि । अपनी गदा से भगवान दुष्टों का दमन करते हैं । उन्हें दंड देते हैं । पुराण KATHAON में श्रीभगवान की इस गदा का नाम ' कौमेद ' है । वह गदा दुष्प्रवृति उन्मूलन की प्रतीक है । दुष्टता चाहे कितनी भी बढ़ी-चढ़ी हो, दुष्प्रवृतियों का विस्तार कितना ही व्यापक क्यों न हो, पर प्रभु की गदा की चोट उनके विनाश में संपूर्ण समर्थ है ।
भगवान अपने विराट रूप का दर्शन संभवत: अर्जुन को यह समझाने के लिये है कि दुष्टों के संहार में, दुष्प्रवृतियों के उन्मूलन में अब और अधिक देर नहीं ।
समझाने और सज्जनता तथा प्रेम से सुधार की नीति हमेशा सफल नहीं होती । दुष्टता को भय की भाषा ही समझ में आती है । नीतिशास्त्र में भी साम की तरह दंड को भी औचित्य की ही संज्ञा दी गई है ।
दुष्प्रवृतियों और दुष्टों के संहारक हैं-- भगवान श्रीहरि । अपनी गदा से भगवान दुष्टों का दमन करते हैं । उन्हें दंड देते हैं । पुराण KATHAON में श्रीभगवान की इस गदा का नाम ' कौमेद ' है । वह गदा दुष्प्रवृति उन्मूलन की प्रतीक है । दुष्टता चाहे कितनी भी बढ़ी-चढ़ी हो, दुष्प्रवृतियों का विस्तार कितना ही व्यापक क्यों न हो, पर प्रभु की गदा की चोट उनके विनाश में संपूर्ण समर्थ है ।
भगवान अपने विराट रूप का दर्शन संभवत: अर्जुन को यह समझाने के लिये है कि दुष्टों के संहार में, दुष्प्रवृतियों के उन्मूलन में अब और अधिक देर नहीं ।
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