जहाँ भगवान की चेतना होगी, प्रकाश होगा, वहां पूर्णता होगी, लेकिन जहाँ परमात्मा का प्रकाश नहीं है अंधकार है तो इस अंधकार को, अनीति को हारना ही होगा |
महाभारत की एक कथा है--- गांधारी ने दुर्योधन का----अनीति का कभी साथ नहीं दिया | दुर्योधन ने माँ के तपोबल को देखकर उनसे याचना की--- " भीम के साथ होने जा रहे द्वंद युद्ध में आप आशीर्वाद दें | " द्वंद का अर्थ कोई दो नहीं एक ही जीवित रहेगा, ऐसा युद्ध ।
जीवन भर आँखों पर पट्टी बांधकर अपने पति का साथ देकर उन्होंने जो बल अर्जित किया था, उसका एक अंश आशीर्वाद के रूप में दुर्योधन माँ से चाहता था ।
प्रेमवश गांधारी ने कहा ---- " तू निर्वस्त्र होकर आ, मैं आँख की पट्टी थोड़ी देर के लिये खोलूंगी । तू खड़े रहना । "
श्रीकृष्ण जानते थे कि यदि ऐसा हुआ तो इसका समूचा शरीर वज्र का हो जायेगा, फिर इसे कोई हरा नहीं सकता । उन्होंने राह में दुर्योधन को टोका---" हम भी तुम्हारी माँ के पास जा रहे हैं, पर तुम बिलकुल वस्त्रहीन होकर क्यों जा रहे हो, लँगोटी लगा लो, पत्ते लपेट लो । थोड़ी तो शरम करो । माँ के सामने तुम इतने बड़े वस्त्रहीन खड़े होगे, अच्छा लगेगा ? "
दुर्योधन को सलाह समझ में आ गई ।
दुर्योधन लँगोटी पहन कर माँ के सामने आया । गांधारी ने आँखे खोली , देख लिया कि पूरा शरीर वज्र का नहीं बन पाया । श्रीकृष्ण की लीला भी समझ में आ गई । पुत्र का वध होगा व कुल का सर्वनाश , यह भी समझ में आ गया ।
दुर्योधन को जब भीम ने ललकारा तो दोनों में बड़ा भीषण युद्ध हुआ । श्रीकृष्ण ने भीम को इशारा किया कि कौन सा हिस्सा कमजोर है, गदा वहीँ पर मारनी होगी । गदा वहीँ पर पड़ी, जहाँ का हिस्सा वज्र के समान नहीं बन पाया था और दुर्योधन मारा गया ।
कथा का सार है कि गांधारी के तप का तेज जहाँ नहीं पहुँच पाया, जहाँ परमात्मा का प्रकाश नहीं है वहां हारना ही है । अनीति का ऐसा ही अंत होता है ।
महाभारत की एक कथा है--- गांधारी ने दुर्योधन का----अनीति का कभी साथ नहीं दिया | दुर्योधन ने माँ के तपोबल को देखकर उनसे याचना की--- " भीम के साथ होने जा रहे द्वंद युद्ध में आप आशीर्वाद दें | " द्वंद का अर्थ कोई दो नहीं एक ही जीवित रहेगा, ऐसा युद्ध ।
जीवन भर आँखों पर पट्टी बांधकर अपने पति का साथ देकर उन्होंने जो बल अर्जित किया था, उसका एक अंश आशीर्वाद के रूप में दुर्योधन माँ से चाहता था ।
प्रेमवश गांधारी ने कहा ---- " तू निर्वस्त्र होकर आ, मैं आँख की पट्टी थोड़ी देर के लिये खोलूंगी । तू खड़े रहना । "
श्रीकृष्ण जानते थे कि यदि ऐसा हुआ तो इसका समूचा शरीर वज्र का हो जायेगा, फिर इसे कोई हरा नहीं सकता । उन्होंने राह में दुर्योधन को टोका---" हम भी तुम्हारी माँ के पास जा रहे हैं, पर तुम बिलकुल वस्त्रहीन होकर क्यों जा रहे हो, लँगोटी लगा लो, पत्ते लपेट लो । थोड़ी तो शरम करो । माँ के सामने तुम इतने बड़े वस्त्रहीन खड़े होगे, अच्छा लगेगा ? "
दुर्योधन को सलाह समझ में आ गई ।
दुर्योधन लँगोटी पहन कर माँ के सामने आया । गांधारी ने आँखे खोली , देख लिया कि पूरा शरीर वज्र का नहीं बन पाया । श्रीकृष्ण की लीला भी समझ में आ गई । पुत्र का वध होगा व कुल का सर्वनाश , यह भी समझ में आ गया ।
दुर्योधन को जब भीम ने ललकारा तो दोनों में बड़ा भीषण युद्ध हुआ । श्रीकृष्ण ने भीम को इशारा किया कि कौन सा हिस्सा कमजोर है, गदा वहीँ पर मारनी होगी । गदा वहीँ पर पड़ी, जहाँ का हिस्सा वज्र के समान नहीं बन पाया था और दुर्योधन मारा गया ।
कथा का सार है कि गांधारी के तप का तेज जहाँ नहीं पहुँच पाया, जहाँ परमात्मा का प्रकाश नहीं है वहां हारना ही है । अनीति का ऐसा ही अंत होता है ।
No comments:
Post a Comment