जीवन गतिशीलता का दूसरा नाम है । जहाँ ठहराव आता है, वहीँ जीवन मृत्यु की ओर जाने लगता है , इस गतिशीलता को दिशा देकर और अपने को आनंद और सुख के महासागर ईश्वर से जोड़कर, जिसका निवास हमारे ही ह्रदय में है, मनुष्य अपने दुःखों से मुक्ति प्राप्त कर सकता है, पूर्णता व आनंद प्राप्त कर सकता है ।
एक व्यक्ति नित्य संत फरीद के पास जाकर पूछता--- " मेरी बुरी आदतें, मेरा दुष्ट स्वभाव कैसे छूटेगा ?" फरीद उसे रोज टाल देते । एक दिन जब उसने बहुत जिद की तो वह गंभीर हो गये और उसकी मस्तक की रेखाएं देखते हुए बोले-- " देखो, अब तुम्हारा अंत निकट आ गया है।
तुम्हारी जिंदगी अब 40 दिनों से ज्यादा नहीं है । " सुनने वाला व्यक्ति चिंता में डूब गया और उसने 40 दिन तक तप-अनुष्ठान करने का निश्चय किया । इस तरह वह पूरे 40 दिन दुःख भय और अपनी बीती हुई जिंदगी का पश्चाताप करने तथा भजन करने में लगा रहा ।
40 दिन में जब केवल एक दिन बचा तो संत फरीद ने उसे अपने पास बुलाया और पूछा--- " इन चालीस दिनों में तुमने कितनी बार दुष्टता की, कितने पाप किये ? "
उसने उत्तर दिया-- " एक बार भी मेरे मन में कोई गलत ख्याल नहीं आया । चित पर हर क्षण मृत्यु का भय छाया रहा, ऐसे में दुष्ट आदतें कहाँ हावी हो पातीं । "
उसकी बात पर संत ने कहा-- " बुराइयों से बचने का एक ही उपाय है, हर घड़ी मृत्यु को याद रखो और वह करने की सोचो, जिससे भविष्य उज्ज्वल बने । " मृत्यु टल जाने की बात जानकर वह व्यक्ति चला गया, अब उसके स्वभाव में दुष्टता एवं बुराइयाँ नहीं रह गईं, मृत्यु के स्मरण ने उसे निष्पाप कर दिया ।
एक व्यक्ति नित्य संत फरीद के पास जाकर पूछता--- " मेरी बुरी आदतें, मेरा दुष्ट स्वभाव कैसे छूटेगा ?" फरीद उसे रोज टाल देते । एक दिन जब उसने बहुत जिद की तो वह गंभीर हो गये और उसकी मस्तक की रेखाएं देखते हुए बोले-- " देखो, अब तुम्हारा अंत निकट आ गया है।
तुम्हारी जिंदगी अब 40 दिनों से ज्यादा नहीं है । " सुनने वाला व्यक्ति चिंता में डूब गया और उसने 40 दिन तक तप-अनुष्ठान करने का निश्चय किया । इस तरह वह पूरे 40 दिन दुःख भय और अपनी बीती हुई जिंदगी का पश्चाताप करने तथा भजन करने में लगा रहा ।
40 दिन में जब केवल एक दिन बचा तो संत फरीद ने उसे अपने पास बुलाया और पूछा--- " इन चालीस दिनों में तुमने कितनी बार दुष्टता की, कितने पाप किये ? "
उसने उत्तर दिया-- " एक बार भी मेरे मन में कोई गलत ख्याल नहीं आया । चित पर हर क्षण मृत्यु का भय छाया रहा, ऐसे में दुष्ट आदतें कहाँ हावी हो पातीं । "
उसकी बात पर संत ने कहा-- " बुराइयों से बचने का एक ही उपाय है, हर घड़ी मृत्यु को याद रखो और वह करने की सोचो, जिससे भविष्य उज्ज्वल बने । " मृत्यु टल जाने की बात जानकर वह व्यक्ति चला गया, अब उसके स्वभाव में दुष्टता एवं बुराइयाँ नहीं रह गईं, मृत्यु के स्मरण ने उसे निष्पाप कर दिया ।
No comments:
Post a Comment