श्वास की डोर से जीवन की माला गुँथी है । शरीर हो या मन, दोनों ही श्वासों की लय से लयबद्ध होते हैं । शरीर से मनुष्य कहीं भी-- चाँद पर और मंगल गृह पर जा पहुँचे, वह जस का तस रहता है, परंतु श्वास की लय के परिवर्तन से तो उसका जीवन ही बदल जाता है ।
श्वास की लय में परिवर्तन आंतरिक होशपूर्वक होना चाहिये । हमें समझना होगा, विश्वास करना होगा कि हजार आँखों से ईश्वर हर क्षण हमें देख रहें हैं, इसलिये प्रत्येक श्वास के साथ होशपूर्वक रहना होगा और साथ ही श्वास-श्वास के साथ भगवन्नाम के जप का अभ्यास करना होगा । ऐसा हो तो श्वासों की लय के साथ जीवन की लय भी बदल जाती है ।
विश्व विख्यात वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन बर्लिन हवाई अड्डे से हवाई जहाज में सवार हुए । थोड़ी देर में उन्होंने माला निकाल कर जपना शुरू कर दिया । उनके पास बैठे युवक ने उनकी ओर देखते हुए कहा-- " आज का युग वैज्ञानिक युग है । आज दुनिया में आइंस्टीन जैसे वैज्ञानिक हैं और आप माला जपकर रुढ़िवाद को बढ़ावा दे रहे हैं । " ऐसा कहकर उसने अपना कार्ड उनकी ओर बढ़ाया और बोला--- " मैं अंधविश्वास समाप्त करने वाले वैज्ञानिकों के दल का प्रमुख हूँ ।
कभी मिलने आइये । " उत्तर में आइंस्टीन ने मुस्कराकर अपना कार्ड निकाला और उसे दिया ।
उनका नाम पढ़ते ही वह युवक हक्का-बक्का रह गया । आइंस्टीन बोले--- "दोस्त ! वैज्ञानिक होना और आध्यात्मिक होना, विरोधी बातें नहीं हैं । बिना आस्था के विज्ञान विनाश ही पैदा करेगा, विकास नहीं । " युवक के जीवन की दिशा यह सुनकर बदल ही गई ।
श्वास की लय में परिवर्तन आंतरिक होशपूर्वक होना चाहिये । हमें समझना होगा, विश्वास करना होगा कि हजार आँखों से ईश्वर हर क्षण हमें देख रहें हैं, इसलिये प्रत्येक श्वास के साथ होशपूर्वक रहना होगा और साथ ही श्वास-श्वास के साथ भगवन्नाम के जप का अभ्यास करना होगा । ऐसा हो तो श्वासों की लय के साथ जीवन की लय भी बदल जाती है ।
विश्व विख्यात वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन बर्लिन हवाई अड्डे से हवाई जहाज में सवार हुए । थोड़ी देर में उन्होंने माला निकाल कर जपना शुरू कर दिया । उनके पास बैठे युवक ने उनकी ओर देखते हुए कहा-- " आज का युग वैज्ञानिक युग है । आज दुनिया में आइंस्टीन जैसे वैज्ञानिक हैं और आप माला जपकर रुढ़िवाद को बढ़ावा दे रहे हैं । " ऐसा कहकर उसने अपना कार्ड उनकी ओर बढ़ाया और बोला--- " मैं अंधविश्वास समाप्त करने वाले वैज्ञानिकों के दल का प्रमुख हूँ ।
कभी मिलने आइये । " उत्तर में आइंस्टीन ने मुस्कराकर अपना कार्ड निकाला और उसे दिया ।
उनका नाम पढ़ते ही वह युवक हक्का-बक्का रह गया । आइंस्टीन बोले--- "दोस्त ! वैज्ञानिक होना और आध्यात्मिक होना, विरोधी बातें नहीं हैं । बिना आस्था के विज्ञान विनाश ही पैदा करेगा, विकास नहीं । " युवक के जीवन की दिशा यह सुनकर बदल ही गई ।
No comments:
Post a Comment