' कार्य में श्रेष्ठता की अभिव्यक्ति होना तभी संभव है, जब उसके मूल में चिंतन की उत्कृष्टता हो ।'
धर्म , अध्यात्म, शांति, उदारता आदि सद्गुणों के विस्तार के लिए प्रचार-प्रक्रिया तो बहुत होती हैं किंतु कानो से सुनने अथवा मस्तिष्क से समझ लेने मात्र से चिंतन-चरित्र में परिवर्तन नहीं होता । व्यक्ति के व्यक्तित्व का सुधार-परिष्कार तो मात्र अंत:प्रेरणा से ही संभव है ।
वर्तमान समय आस्था-संकट का है । चिंतन क्षेत्र बंजर हो जाने से, अंत:करण मूर्च्छित हो जाने से उसमे धर्मधारणा के बीजांकुर नहीं जमते हैं । यही कारण है कि इतने प्रवचन, धार्मिक कार्यक्रम होने के बावजूद भी समस्या का समाधान नहीं हुआ ।
हमारे ऋषि, महर्षि, योगी ने अपने अनुभव के आधार पर यह सत्य प्रतिपादित किया कि
' निष्काम कर्म से मन निर्मल होता, सदभाव से सत्कर्म और सद्ज्ञान उत्पन्न होता है । सद्ज्ञान , सद्बुद्धि से ही लोग उत्कृष्टता की ओर अपना स्तर उठाने तथा आदर्शवादिता को अपनाने के लिए प्रयत्न करेंगे । '
" परमार्थ से , निष्काम कर्म से भावनाएँ परिष्कृत होती हैं और जीवन की आंतरिक नीरसता व खोखलापन दूर होता है । "
धर्म , अध्यात्म, शांति, उदारता आदि सद्गुणों के विस्तार के लिए प्रचार-प्रक्रिया तो बहुत होती हैं किंतु कानो से सुनने अथवा मस्तिष्क से समझ लेने मात्र से चिंतन-चरित्र में परिवर्तन नहीं होता । व्यक्ति के व्यक्तित्व का सुधार-परिष्कार तो मात्र अंत:प्रेरणा से ही संभव है ।
वर्तमान समय आस्था-संकट का है । चिंतन क्षेत्र बंजर हो जाने से, अंत:करण मूर्च्छित हो जाने से उसमे धर्मधारणा के बीजांकुर नहीं जमते हैं । यही कारण है कि इतने प्रवचन, धार्मिक कार्यक्रम होने के बावजूद भी समस्या का समाधान नहीं हुआ ।
हमारे ऋषि, महर्षि, योगी ने अपने अनुभव के आधार पर यह सत्य प्रतिपादित किया कि
' निष्काम कर्म से मन निर्मल होता, सदभाव से सत्कर्म और सद्ज्ञान उत्पन्न होता है । सद्ज्ञान , सद्बुद्धि से ही लोग उत्कृष्टता की ओर अपना स्तर उठाने तथा आदर्शवादिता को अपनाने के लिए प्रयत्न करेंगे । '
" परमार्थ से , निष्काम कर्म से भावनाएँ परिष्कृत होती हैं और जीवन की आंतरिक नीरसता व खोखलापन दूर होता है । "
No comments:
Post a Comment