आज का युग परिस्थितियों को दोष देने वालों का युग है परंतु मनुष्य परिस्थितियों का दास नहीं, उनका निर्माता, नियंत्रणकर्ता और स्वामी है | जो भी प्रगति या अवगति आज है, जनमानस का स्तर जैसा ऊँचा उठा या गिरा, उसके पीछे मनुष्य का चिंतन ही जिम्मेदार है । आस्था का केंद्र है----अंत:करण । यह व्यक्तित्व का आधारभूत कर्मस्थल है । यहीं से भाव-विचार उठते हैं और यही सब कराते हैं जो आज होता दीख रहा है ।
आज साधन-सुविधाओं की, प्रतिभाओं की कमी नहीं है पर लोकमानस पर तो पशु-प्रवृतियां ही हावी हैं । आज आस्था की, जीवन-मूल्यों की कमी है । इस समस्या का समाधान क्या हो ?
लोक-चिंतन में, सोच में आमूलचूल परिवर्तन किया जाये, सारे वातावरण को अध्यात्मवादी बनाया जाये । योग एवं तप के संयुक्त प्रयोग से विचारों का परिष्कार संभव है ।
' कर्तव्य ही धर्म है, कर्तव्यपालन ही सबसे बड़ी पूजा-तपस्या है ' कर्मयोग को जीवन में उतारकर ही वातावरण का परिष्कार संभव है
आज साधन-सुविधाओं की, प्रतिभाओं की कमी नहीं है पर लोकमानस पर तो पशु-प्रवृतियां ही हावी हैं । आज आस्था की, जीवन-मूल्यों की कमी है । इस समस्या का समाधान क्या हो ?
लोक-चिंतन में, सोच में आमूलचूल परिवर्तन किया जाये, सारे वातावरण को अध्यात्मवादी बनाया जाये । योग एवं तप के संयुक्त प्रयोग से विचारों का परिष्कार संभव है ।
' कर्तव्य ही धर्म है, कर्तव्यपालन ही सबसे बड़ी पूजा-तपस्या है ' कर्मयोग को जीवन में उतारकर ही वातावरण का परिष्कार संभव है
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