आध्यात्मिकता मनुष्य की अंत:चेतना का सुरम्य वैभव है । इसकी यह शक्ति एवं सामर्थ्य कभी समाप्त होने वाली नहीं है । मानव की आध्यात्मिक सामर्थ्य असीम और अतुलनीय है ।
शत्रुओं से घिरे एक नगर की प्रजा अपना माल, समान पीठ पर लादे हुए जान बचाकर भाग रही थी' उन्ही में से एक खाली हाथ चलने वाला व्यक्ति सिर ऊँचा किये अकड़कर चल रहा था, । लोगों ने उससे पूछा " तेरे पास तो कुछ भी नहीं है, इतनी गरीबी के होते हुए फिर अकड़ किस बात है ? "
दार्शनिक वायस ने कहा------ " मेरे पास जन्म भर की संग्रहीत पूंजी है, उसके आधार पर अगले ही दिनों फिर अच्छा भविष्य सामने आ खड़ा होने का विश्वास । यह पूंजी है-----अच्छी परिस्थितियां फिर से बना लेने की हिम्मत । इस पूंजी के रहते मुझे सिर नीचा करने की आवश्यकता ही क्या है ?'
शत्रुओं से घिरे एक नगर की प्रजा अपना माल, समान पीठ पर लादे हुए जान बचाकर भाग रही थी' उन्ही में से एक खाली हाथ चलने वाला व्यक्ति सिर ऊँचा किये अकड़कर चल रहा था, । लोगों ने उससे पूछा " तेरे पास तो कुछ भी नहीं है, इतनी गरीबी के होते हुए फिर अकड़ किस बात है ? "
दार्शनिक वायस ने कहा------ " मेरे पास जन्म भर की संग्रहीत पूंजी है, उसके आधार पर अगले ही दिनों फिर अच्छा भविष्य सामने आ खड़ा होने का विश्वास । यह पूंजी है-----अच्छी परिस्थितियां फिर से बना लेने की हिम्मत । इस पूंजी के रहते मुझे सिर नीचा करने की आवश्यकता ही क्या है ?'
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