आदर्शनिष्ठा और सिद्धांत-वादिता की सच्ची परख यही है कि उन्हें आचरण में उतारा जाये, कथनी और करनी में एकरूपता हो |
हिंदी भाषा में भारतेन्दु हरिश्चंद को खड़ी बोली के जनक के रूप में जाना जाता है । एक महाजन का तीस हजार रूपये का ऋण था, समय पर चुकता न होने के कारण उसने, उनके विरुद्ध दावा कर दिया । ऋण से उन्होंने एक नाव खरीदी थी किन्तु महाजन के पास इसका कोई लिखित ब्यौरा नहीं था । न्यायधीश की उनके प्रति सहानुभूति थी । ब्यौरा न होने के कारण भारतेन्दु जी मुकर सकते थे कि उन्होंने कोई ऋण नहीं लिया लेकिन वे चट्टान की भांति अपनी सत्यनिष्ठा पर अडिग रहे और कहा कि पैसे के लिए मैं कभी भी धर्म एवं सत्य का परित्याग नहीं कर सकता । ऋण का भुगतान अंततः उन्होंने अपना मकान बेचकर किया किन्तु सत्यनिष्ठा पर आंच न आने दी ।
इसी तरह क्रन्तिकारी विचारों के जनक कार्ल-मार्क्स को भी अपने जीवन में अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा लेकिन वे प्रलोभनों के आगे झुके नहीं । श्रेष्ठ सिद्धांतो को व्यक्तिगत आवश्यकताओं से भी अधिक महत्व देने वाले कार्ल-मार्क्स को उनके आदर्शों ने महानता की ओर अग्रसर किया और विश्वविख्यात बनाया ।
हिंदी भाषा में भारतेन्दु हरिश्चंद को खड़ी बोली के जनक के रूप में जाना जाता है । एक महाजन का तीस हजार रूपये का ऋण था, समय पर चुकता न होने के कारण उसने, उनके विरुद्ध दावा कर दिया । ऋण से उन्होंने एक नाव खरीदी थी किन्तु महाजन के पास इसका कोई लिखित ब्यौरा नहीं था । न्यायधीश की उनके प्रति सहानुभूति थी । ब्यौरा न होने के कारण भारतेन्दु जी मुकर सकते थे कि उन्होंने कोई ऋण नहीं लिया लेकिन वे चट्टान की भांति अपनी सत्यनिष्ठा पर अडिग रहे और कहा कि पैसे के लिए मैं कभी भी धर्म एवं सत्य का परित्याग नहीं कर सकता । ऋण का भुगतान अंततः उन्होंने अपना मकान बेचकर किया किन्तु सत्यनिष्ठा पर आंच न आने दी ।
इसी तरह क्रन्तिकारी विचारों के जनक कार्ल-मार्क्स को भी अपने जीवन में अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा लेकिन वे प्रलोभनों के आगे झुके नहीं । श्रेष्ठ सिद्धांतो को व्यक्तिगत आवश्यकताओं से भी अधिक महत्व देने वाले कार्ल-मार्क्स को उनके आदर्शों ने महानता की ओर अग्रसर किया और विश्वविख्यात बनाया ।
No comments:
Post a Comment