सर यदुनाथ सरकार ने भारतीय संस्कृति के गरिमामय ओजस्वी और आत्माभिमानी स्वरुप को संसार के सम्मुख खोला और उसे संवारा-संजोया, इसके लिए शताब्दियों तक उनका नाम याद किया जाता रहेगा । उन्हें नया इतिहास लिखने की प्रेरणा कहाँ से मिली इस संबंध में एक घटना प्रसिद्ध है----
1905 में कलकत्ता में भयंकर हैजा फैला, इस महामारी में कई लोग मर गये । कलकत्ता के गली-सड़कों में स्थान-स्थान पर गंदगी के अम्बार लग गये थे, इससे महामारी का और भी वीभत्स रूप प्रकट होने की आशंका हुई । ऐसी स्थिति में भगिनी निवेदिता अपने सहयोगी सहकर्मियों को साथ लेकर सफाई अभियान में जुटीं और स्वयं झाड़ू लेकर रास्तों पर पड़ी गंदगी हटाने लगीं । भगिनी निवेदिता को सफाई करते देख सर यदुनाथ भी बड़े प्रभावित हुए ओर वे भी इस काम में लग गये । इस काम को करते समय ही उनके मन में संकल्प उठा कि
सड़कों की सफाई की तरह इतिहास क्षेत्र में प्रचलित गलत धारणाओं की भी सफाई करनी चाहिए और उन्होंने मुगल काल के इतिहास का पुनर्शोधन आरम्भ किया ।
इसके लिए उन्होंने अकबर के प्रधान सभासद और विश्वस्त मंत्री अबुलफजल द्वारा लिखा ऐतिहासिक ग्रंथ ' आइने अकबरी ' के अध्ययन के लिए फारसी और अरबी भाषा का अध्ययन किया ।
आइने अकबरी एवं इतिहास जानने के अन्य साधनों के बल पर उन्होंने इतना तथ्यपूर्ण विवरण प्रस्तुत किया कि उसे देखकर अंग्रेज इतिहासकार भी चमत्कृत हो उठे ।
उन्होंने मुगल काल के संबंध में फैली हुई कई गलत धारणाओं का खंडन किया और वस्तुस्थिति को सप्रमाण रखा । इसके बाद उन्होंने मराठा शासकों, शिवाजी और पेशवाओं के इतिहास का यथातथ्य विवरण प्रस्तुत करने के अनथक प्रयास किये । 1699 में मराठा और पठान सैनिकों की लड़ाई---- दूसरे पानीपत युद्ध का जो प्रमाणिक विश्लेषण उन्होंने किया वह इतिहास के मार्ग में मील का पत्थर है ।
मराठा इतिहास के संबंध में उनकी देन राष्ट्रीय उपलब्धि भी कही जाती है, उनके निष्कर्ष इतिहास को एक नई द्रष्टि प्रदान करने में सक्षम हैं ।
उन्होंने न केवल भारतीय इतिहास के अँधेरे पृष्ठ को खोला, वे अपने शिष्यों से पुत्रवत स्नेह और वात्सल्यपूर्ण व्यवहार करते थे, जिसके लिए उन्हें युगों-युगों तक याद किया जायेगा ।
1905 में कलकत्ता में भयंकर हैजा फैला, इस महामारी में कई लोग मर गये । कलकत्ता के गली-सड़कों में स्थान-स्थान पर गंदगी के अम्बार लग गये थे, इससे महामारी का और भी वीभत्स रूप प्रकट होने की आशंका हुई । ऐसी स्थिति में भगिनी निवेदिता अपने सहयोगी सहकर्मियों को साथ लेकर सफाई अभियान में जुटीं और स्वयं झाड़ू लेकर रास्तों पर पड़ी गंदगी हटाने लगीं । भगिनी निवेदिता को सफाई करते देख सर यदुनाथ भी बड़े प्रभावित हुए ओर वे भी इस काम में लग गये । इस काम को करते समय ही उनके मन में संकल्प उठा कि
सड़कों की सफाई की तरह इतिहास क्षेत्र में प्रचलित गलत धारणाओं की भी सफाई करनी चाहिए और उन्होंने मुगल काल के इतिहास का पुनर्शोधन आरम्भ किया ।
इसके लिए उन्होंने अकबर के प्रधान सभासद और विश्वस्त मंत्री अबुलफजल द्वारा लिखा ऐतिहासिक ग्रंथ ' आइने अकबरी ' के अध्ययन के लिए फारसी और अरबी भाषा का अध्ययन किया ।
आइने अकबरी एवं इतिहास जानने के अन्य साधनों के बल पर उन्होंने इतना तथ्यपूर्ण विवरण प्रस्तुत किया कि उसे देखकर अंग्रेज इतिहासकार भी चमत्कृत हो उठे ।
उन्होंने मुगल काल के संबंध में फैली हुई कई गलत धारणाओं का खंडन किया और वस्तुस्थिति को सप्रमाण रखा । इसके बाद उन्होंने मराठा शासकों, शिवाजी और पेशवाओं के इतिहास का यथातथ्य विवरण प्रस्तुत करने के अनथक प्रयास किये । 1699 में मराठा और पठान सैनिकों की लड़ाई---- दूसरे पानीपत युद्ध का जो प्रमाणिक विश्लेषण उन्होंने किया वह इतिहास के मार्ग में मील का पत्थर है ।
मराठा इतिहास के संबंध में उनकी देन राष्ट्रीय उपलब्धि भी कही जाती है, उनके निष्कर्ष इतिहास को एक नई द्रष्टि प्रदान करने में सक्षम हैं ।
उन्होंने न केवल भारतीय इतिहास के अँधेरे पृष्ठ को खोला, वे अपने शिष्यों से पुत्रवत स्नेह और वात्सल्यपूर्ण व्यवहार करते थे, जिसके लिए उन्हें युगों-युगों तक याद किया जायेगा ।
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