मनुष्य की आंतरिक विकृतियां ही समाज में बैर, हिंसा, हत्या व क्रूरता को जन्म देती हैं । कोई भी व्यक्ति फिर वह किसी भी धर्म का क्यों न हो, यदि उसका अंत:करण प्रेमपूर्ण और परिष्कृत है तो वह कभी किसी कारण से किसी का नुकसान नहीं करेगा ।
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