' व्यावहारिक जीवन जीते हुए, संघर्ष करते हुए, दुःखों का सामना करते हुए जो तपकर कुन्दन की की तरह दमकता है, वही सही अर्थों में तपस्वी है, योगी है । '
महायोगी गोरखनाथ योगविद्दा के बहुत बड़े आचार्य और सिद्ध थे । लोगों की धारणा है कि योग की सिद्धि के प्रभाव से उन्होंने ' अमर स्थिति ' प्राप्त की थी और आज भी वे कभी किसी भाग्यशाली को दर्शन दे जाते हैं । अनेक विद्वानों का मत है कि गोरखनाथ ने भारतीय संस्कृति के संरक्षण में बहुत अधिक सहयोग दिया है ।
गोरखनाथ के गुरू थे------ योग मार्ग के प्रबल प्रवर्तक -- मत्स्येन्द्रनाथ ।
परम गुरु ने अपने शिष्य गोरखनाथ को समझाते हुए कहा----- " देह की दुर्बलता, कष्ट अनुभव करने की क्षमता ही मानव को तप एवं तितिक्षा के साधन देती है , जिसमे सम्पूर्ण स्रष्टि को बदल डालने की शक्ति है | " उन्होंने कहा---- " तप का मूल है तितिक्षा और तितिक्षा कहते हैं शीत, उष्ण, सुख, दुःख आदि द्वंदों को प्रसन्नतापूर्वक सहन करने को | तितिक्षा की आग में पककर ही शरीर और मन निर्द्वंद होते हैं । "
उन्होंने कहा---- " संसार में रहकर, लोककल्याण के लिए स्वयं को नियोजित करो । मनुष्य जीवन को उर्ध्वगामी बनाने के लिए जो मान-अपमान सहना पड़े उसमे समान रहो । यह तुम्हारा मानसिक तप है ।
महायोगी गोरखनाथ योगविद्दा के बहुत बड़े आचार्य और सिद्ध थे । लोगों की धारणा है कि योग की सिद्धि के प्रभाव से उन्होंने ' अमर स्थिति ' प्राप्त की थी और आज भी वे कभी किसी भाग्यशाली को दर्शन दे जाते हैं । अनेक विद्वानों का मत है कि गोरखनाथ ने भारतीय संस्कृति के संरक्षण में बहुत अधिक सहयोग दिया है ।
गोरखनाथ के गुरू थे------ योग मार्ग के प्रबल प्रवर्तक -- मत्स्येन्द्रनाथ ।
परम गुरु ने अपने शिष्य गोरखनाथ को समझाते हुए कहा----- " देह की दुर्बलता, कष्ट अनुभव करने की क्षमता ही मानव को तप एवं तितिक्षा के साधन देती है , जिसमे सम्पूर्ण स्रष्टि को बदल डालने की शक्ति है | " उन्होंने कहा---- " तप का मूल है तितिक्षा और तितिक्षा कहते हैं शीत, उष्ण, सुख, दुःख आदि द्वंदों को प्रसन्नतापूर्वक सहन करने को | तितिक्षा की आग में पककर ही शरीर और मन निर्द्वंद होते हैं । "
उन्होंने कहा---- " संसार में रहकर, लोककल्याण के लिए स्वयं को नियोजित करो । मनुष्य जीवन को उर्ध्वगामी बनाने के लिए जो मान-अपमान सहना पड़े उसमे समान रहो । यह तुम्हारा मानसिक तप है ।
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