झाँसी की रानी के बाद अंग्रेज यदि किसी से घबराते थे तो वह थे तांत्या टोपे l कहा जाता है तांत्या वर्षा काल में चम्बल की तूफानी लहरों पर सर्प की भांति तैर जाते थे । ताँत्या टोपे में विलक्षण दैवी शक्ति थी । विकट परिस्थिति में जब कभी मार्ग में घोड़े को छोड़ देना पड़ता था तब सेनापति ताँत्या टोपे द्रुत गति से क्रान्ति का संचालन करने के लिए अपने पैरों में एक विशेष प्रकार के बने हुए लम्बे बाँसों का प्रयोग किया करते थे । जिस समय वे इन बाँसों को पैरों में बांधकर वायु वेग से भागते थे , उस समय अंग्रेज शत्रुओं की दक्ष, सुसज्जित और साधन संपन्न सेनाएं उनके पैरों की उड़ती हुई धूल को भी नहीं देख पाती थीं
ताँत्या टोपे के अपूर्व बल और रण -चातुर्य पर मुग्ध होकर लन्दन के ' डेली न्यूज ' और लन्दन टाइम्स तक ने उनकी बड़ी प्रशंसा की है । नेलसन नामक अंग्रेज लेखक ने अपनी ' भारत -विद्रोह का इतिहास ' नामक पुस्तक में लिखा है --- " नि :संदेह संसार की किसी भी वीर सेना ने इतनी तीव्रगति और साहस के साथ कभी कूच नहीं किया जितनी तेजी के साथ बहादुर ताँत्या टोपे की सेना ने किया । "
लन्दन के ' डेली न्यूज ' के संवाददाता की रिपोर्ट के अनुसार --- " अपनी गति में ताँत्या टोपे बिजली को भी मात कर रहा है । पर्वतों की चढ़ाई पर , कंदराओं में , घाटियों में , आगे -पीछे कहीं भी ताँत्या टोपे के जाने में कोई बाधा नहीं डाल सकता है । वह चक्करदार मार्गों से तुरन्त ही हमारी सेनाओ और सामान की गाड़ियों पर बाज की तरह आक्रमण करता है किन्तु हमारे हाथ नहीं आता है । सर्वोत्तम मशीन भी इतनी तेजी न कर सकेगी जितनी तूफानी तेजी ताँत्या करता है । "
ताँत्या टोपे का जन्म 1814 में हुए था , इनका बचपन का नाम रामचन्द्र राव था , उनकी शस्त्रों में रूचि देख उन्हे शस्त्र -विद्दा सिखाने का कार्य स्वयं बाजीराव पेशवा ने किया । बालक की असाधारण प्रतिभा पर मुग्ध हो उन्होंने राजसभा में रामचन्द्र राव को रत्न जड़ित लाल मखमली टोपी से विभूषित किया और आशीर्वाद देते हुए इस कहा --' बेटा , देश की धरती को एक दिन तुम नापाक फिरंगियों से अवश्य मुक्त कराओगे, इस कार्य में भगवान तुम्हारी सहायता करेंगे । ' उसी दिन से रामचन्द्र राव ताँत्या टोपे के नाम से प्रसिद्ध हुए ।
ताँत्या टोपे के अपूर्व बल और रण -चातुर्य पर मुग्ध होकर लन्दन के ' डेली न्यूज ' और लन्दन टाइम्स तक ने उनकी बड़ी प्रशंसा की है । नेलसन नामक अंग्रेज लेखक ने अपनी ' भारत -विद्रोह का इतिहास ' नामक पुस्तक में लिखा है --- " नि :संदेह संसार की किसी भी वीर सेना ने इतनी तीव्रगति और साहस के साथ कभी कूच नहीं किया जितनी तेजी के साथ बहादुर ताँत्या टोपे की सेना ने किया । "
लन्दन के ' डेली न्यूज ' के संवाददाता की रिपोर्ट के अनुसार --- " अपनी गति में ताँत्या टोपे बिजली को भी मात कर रहा है । पर्वतों की चढ़ाई पर , कंदराओं में , घाटियों में , आगे -पीछे कहीं भी ताँत्या टोपे के जाने में कोई बाधा नहीं डाल सकता है । वह चक्करदार मार्गों से तुरन्त ही हमारी सेनाओ और सामान की गाड़ियों पर बाज की तरह आक्रमण करता है किन्तु हमारे हाथ नहीं आता है । सर्वोत्तम मशीन भी इतनी तेजी न कर सकेगी जितनी तूफानी तेजी ताँत्या करता है । "
ताँत्या टोपे का जन्म 1814 में हुए था , इनका बचपन का नाम रामचन्द्र राव था , उनकी शस्त्रों में रूचि देख उन्हे शस्त्र -विद्दा सिखाने का कार्य स्वयं बाजीराव पेशवा ने किया । बालक की असाधारण प्रतिभा पर मुग्ध हो उन्होंने राजसभा में रामचन्द्र राव को रत्न जड़ित लाल मखमली टोपी से विभूषित किया और आशीर्वाद देते हुए इस कहा --' बेटा , देश की धरती को एक दिन तुम नापाक फिरंगियों से अवश्य मुक्त कराओगे, इस कार्य में भगवान तुम्हारी सहायता करेंगे । ' उसी दिन से रामचन्द्र राव ताँत्या टोपे के नाम से प्रसिद्ध हुए ।
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