सौन्दर्य का शरीर से कोई संबंध नहीं है, वह तो व्यक्तित्व और चरित्र का ही अंग है ।
महाराजा रणजीत सिंह का कद छोटा था, चेहरा चेचक के दागों से भरा हुआ और एक आँख भी नहीं थी किन्तु उनकी प्रतिष्ठा भारत के इतिहास में अति सुन्दर वीर के रूप में हुई है ।
' नाटे कद के व्यक्ति में ऊँचा और लम्बा ह्रदय, नियति ने एक आँख छीन ली परन्तु सूझ-बूझ और नीर-क्षीर विवेकी बुद्धि के रूप में संसार का अदिव्तीय नेत्र उनके पास था, उनके चेहरे पर चेचक के दाग थे परन्तु उस पर देदीप्यमान दिव्य गुणों की आभा अच्छे-अच्छे चेहरों को मात दे देती थी और इस नैसर्गिक सौन्दर्य को प्राप्त किया था उन्होंने अपने समझदार पिता से ।
1780 में पंजाब की एक रियासत के अधिपति महाराजा महासिंह के यहां उनका जन्म हुआ था । जन्म के समय उनका शरीर कुरूप था, लोगों की यह आम धारणा थी कि एक राजकुमार को सुन्दर होना चाहिए । अत: दरबार क कुछ लोग सहानुभूति जताने महाराज महासिंह के पास पहुंचे तो उन्होंने ललकार कर कहा----- " मुझे इस बात का जरा भी दुःख नहीं है कि मेरा बेटा सुन्दर नहीं है । पुरुष का पुरुषार्थी और पराक्रमी होना ही उसका सुन्दर होना है और मैं अपने बेटे को निश्चय ही ऐसा बनाऊंगा । " राजकुमार के कुछ बड़ा होने पर महाराज अपने पुत्र को सौन्दर्यशाली बनाने में जुट गये । वे रणजीतसिंह को घोड़े पर बिठाकर घुमाने ले जाते, घुड़सवारी करवाते, निशाना सिखाते और बन्दूक चलाना सिखाते । रणजीत सिंह को उन्होंने ऐसे वातावरण में रखा जो वीरता और साहस की प्रेरणा देता था । रात को सोते समय भी महासिंह अपने लाड़ले को राम-लक्ष्मण की शौर्य कथाएं सुनाया करते थे । रणजीत सिंह को युद्ध विद्दा में निष्णात करने के साथ उन्होंने अपने पुत्र के चरित्र
गठन पर भी ध्यान दिया । |
पिता की मृत्यु के बाद बारह वर्ष की आयु मे माता के संरक्षण में वे राजगद्दी पर बैठे | वे एक वीर योद्धा, कुशल राजनीतिज्ञ और उदार धर्मप्राण महामानव थे । निष्ठावान सिख होते हुए भी धर्म व सम्प्रदाय के द्रष्टिकोण से उन्होंने कभी पक्षपात नही किया |
महाराजा रणजीत सिंह का कद छोटा था, चेहरा चेचक के दागों से भरा हुआ और एक आँख भी नहीं थी किन्तु उनकी प्रतिष्ठा भारत के इतिहास में अति सुन्दर वीर के रूप में हुई है ।
' नाटे कद के व्यक्ति में ऊँचा और लम्बा ह्रदय, नियति ने एक आँख छीन ली परन्तु सूझ-बूझ और नीर-क्षीर विवेकी बुद्धि के रूप में संसार का अदिव्तीय नेत्र उनके पास था, उनके चेहरे पर चेचक के दाग थे परन्तु उस पर देदीप्यमान दिव्य गुणों की आभा अच्छे-अच्छे चेहरों को मात दे देती थी और इस नैसर्गिक सौन्दर्य को प्राप्त किया था उन्होंने अपने समझदार पिता से ।
1780 में पंजाब की एक रियासत के अधिपति महाराजा महासिंह के यहां उनका जन्म हुआ था । जन्म के समय उनका शरीर कुरूप था, लोगों की यह आम धारणा थी कि एक राजकुमार को सुन्दर होना चाहिए । अत: दरबार क कुछ लोग सहानुभूति जताने महाराज महासिंह के पास पहुंचे तो उन्होंने ललकार कर कहा----- " मुझे इस बात का जरा भी दुःख नहीं है कि मेरा बेटा सुन्दर नहीं है । पुरुष का पुरुषार्थी और पराक्रमी होना ही उसका सुन्दर होना है और मैं अपने बेटे को निश्चय ही ऐसा बनाऊंगा । " राजकुमार के कुछ बड़ा होने पर महाराज अपने पुत्र को सौन्दर्यशाली बनाने में जुट गये । वे रणजीतसिंह को घोड़े पर बिठाकर घुमाने ले जाते, घुड़सवारी करवाते, निशाना सिखाते और बन्दूक चलाना सिखाते । रणजीत सिंह को उन्होंने ऐसे वातावरण में रखा जो वीरता और साहस की प्रेरणा देता था । रात को सोते समय भी महासिंह अपने लाड़ले को राम-लक्ष्मण की शौर्य कथाएं सुनाया करते थे । रणजीत सिंह को युद्ध विद्दा में निष्णात करने के साथ उन्होंने अपने पुत्र के चरित्र
गठन पर भी ध्यान दिया । |
पिता की मृत्यु के बाद बारह वर्ष की आयु मे माता के संरक्षण में वे राजगद्दी पर बैठे | वे एक वीर योद्धा, कुशल राजनीतिज्ञ और उदार धर्मप्राण महामानव थे । निष्ठावान सिख होते हुए भी धर्म व सम्प्रदाय के द्रष्टिकोण से उन्होंने कभी पक्षपात नही किया |
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