' महर्षि चाणक्य एक व्यक्ति होने पर भी अपने में पूरे एक युग थे । उन्होने अपनी बुद्धि और संकल्पशीलता के बल पर तात्कालिक मगध सम्राट नन्द का नाश कर उसके स्थान पर एक साधारण बालक चन्द्रगुप्त मौर्य को स्वयं शिक्षित कर राज्य सिंहासन पर बिठाया ।
शिक्षा प्राप्त करने के बाद चाणक्य ने पाटलिपुत्र में एक विद्दालय की स्थापना की और अपने प्रवचनों एवं प्रचार से जन-मानस में अपने अधिकारों के प्रति जागरूकता ला दी । जिससे स्थान-स्थान पर घननंद की आलोचना होने लगी । घननन्द ने जनता को अपने पक्ष में लाने के लिए अनेक दानशालाएं खुलवा दीं जिनके द्वारा चाटुकार और राज-समर्थक लोगों को रिश्वत की तरह धन का वितरण किया जाने लगा । जनता शोषण से परेशान थी , अब धन के दुरूपयोग से अप्रसन्न रहने लगी ।
चाणक्य नन्द की कपट नीति के विरुद्ध खुला प्रचार करने लगे । चाणक्य को वश में करने के लिए घननंद ने उन्हें दानशालाओं की प्रबंध समिति का अध्यक्ष बना दिया । इस पद पर रहकर उन्होंने धूर्त सदस्यों को समिति से बाहर निकाला और अनियंत्रित दान को नियंत्रित कर उसकी सीमाएं निर्धारित की । उनके सुधारों से नन्द की मूर्खता से पलने वाले धूर्त उनके विरोधी हो गये और षडयंत्र कर चाणक्य को एक दिन दरबार में बुलाकर उनका अपमान कर उन्हें चोटी पकड़ कर बाहर निकाल दिया । यह अपमान उन्हें असह्य हो गया, उन्होंने अपनी खुली चोटी को फटकारते हुए प्रतिज्ञा की कि जब तक इस अन्यायी घननंद को समूल नष्ट कर मगध के सिंहासन पर किसी कुलीन क्षत्रिय को न बैठा दूंगा तब तक अपनी चोटी नहीं बांधूंगा ।
अभी तक वे शांतिपूर्ण सुधारवादी थे किन्तु अब घोर क्रांतिपूर्ण परिवर्तनवादी हो गये । चन्द्रगुप्त मौर्य को प्रशिक्षित करने के साथ उन्होंने भारत के पश्चिमी प्रान्त के राजाओं को संगठित किया और चंद्रगुप्त के लिए एक स्वतंत्र सेना का निर्माण कर दिया ।
चन्द्रगुप्त को इस बात की आशंका थी कि उसकी सीमित शक्ति नन्द वंश का मुकाबला कैसे करेगी ?
उन्होंने अपनी आशंका गुरु से व्यक्त की । महापंडित चाणक्य ने कहा----- " किसी के पास विशाल चतुरंगिणी सेना हो, किन्तु चरित्र न हो तो अपनी इस दुर्बलता के कारण वह अवश्य नष्ट हो जाता
है | " चन्द्रगुप्त गुरुदेव का आशय समझ गये और मगध पर आक्रमण कर विजय प्राप्त की । चाणक्य ने विधिवत अपने हाथ से चन्द्रगुप्त मौर्य को सम्राट पद पर अभिषिक्त करके संतोष पूर्वक अपनी चोटी बांधते हुए कहा---- " जब तक तुम में न्याय, सत्य, आत्मविश्वास, साहस एवं उद्दोग के गुण सुरक्षित रहेंगे, तुम और तुम्हारी संताने इस पद पर बनी रहेंगी । "
चाणक्य ने अनेक महत्वपूर्ण ग्रन्थ लिखे । ' कौटिल्य ' नाम से उन्होंने ' अर्थशास्त्र ' की रचना की जिसे आज भी समस्त संसार में अति महत्वपूर्ण माना जाता है ।
शिक्षा प्राप्त करने के बाद चाणक्य ने पाटलिपुत्र में एक विद्दालय की स्थापना की और अपने प्रवचनों एवं प्रचार से जन-मानस में अपने अधिकारों के प्रति जागरूकता ला दी । जिससे स्थान-स्थान पर घननंद की आलोचना होने लगी । घननन्द ने जनता को अपने पक्ष में लाने के लिए अनेक दानशालाएं खुलवा दीं जिनके द्वारा चाटुकार और राज-समर्थक लोगों को रिश्वत की तरह धन का वितरण किया जाने लगा । जनता शोषण से परेशान थी , अब धन के दुरूपयोग से अप्रसन्न रहने लगी ।
चाणक्य नन्द की कपट नीति के विरुद्ध खुला प्रचार करने लगे । चाणक्य को वश में करने के लिए घननंद ने उन्हें दानशालाओं की प्रबंध समिति का अध्यक्ष बना दिया । इस पद पर रहकर उन्होंने धूर्त सदस्यों को समिति से बाहर निकाला और अनियंत्रित दान को नियंत्रित कर उसकी सीमाएं निर्धारित की । उनके सुधारों से नन्द की मूर्खता से पलने वाले धूर्त उनके विरोधी हो गये और षडयंत्र कर चाणक्य को एक दिन दरबार में बुलाकर उनका अपमान कर उन्हें चोटी पकड़ कर बाहर निकाल दिया । यह अपमान उन्हें असह्य हो गया, उन्होंने अपनी खुली चोटी को फटकारते हुए प्रतिज्ञा की कि जब तक इस अन्यायी घननंद को समूल नष्ट कर मगध के सिंहासन पर किसी कुलीन क्षत्रिय को न बैठा दूंगा तब तक अपनी चोटी नहीं बांधूंगा ।
अभी तक वे शांतिपूर्ण सुधारवादी थे किन्तु अब घोर क्रांतिपूर्ण परिवर्तनवादी हो गये । चन्द्रगुप्त मौर्य को प्रशिक्षित करने के साथ उन्होंने भारत के पश्चिमी प्रान्त के राजाओं को संगठित किया और चंद्रगुप्त के लिए एक स्वतंत्र सेना का निर्माण कर दिया ।
चन्द्रगुप्त को इस बात की आशंका थी कि उसकी सीमित शक्ति नन्द वंश का मुकाबला कैसे करेगी ?
उन्होंने अपनी आशंका गुरु से व्यक्त की । महापंडित चाणक्य ने कहा----- " किसी के पास विशाल चतुरंगिणी सेना हो, किन्तु चरित्र न हो तो अपनी इस दुर्बलता के कारण वह अवश्य नष्ट हो जाता
है | " चन्द्रगुप्त गुरुदेव का आशय समझ गये और मगध पर आक्रमण कर विजय प्राप्त की । चाणक्य ने विधिवत अपने हाथ से चन्द्रगुप्त मौर्य को सम्राट पद पर अभिषिक्त करके संतोष पूर्वक अपनी चोटी बांधते हुए कहा---- " जब तक तुम में न्याय, सत्य, आत्मविश्वास, साहस एवं उद्दोग के गुण सुरक्षित रहेंगे, तुम और तुम्हारी संताने इस पद पर बनी रहेंगी । "
चाणक्य ने अनेक महत्वपूर्ण ग्रन्थ लिखे । ' कौटिल्य ' नाम से उन्होंने ' अर्थशास्त्र ' की रचना की जिसे आज भी समस्त संसार में अति महत्वपूर्ण माना जाता है ।
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