क्यूबा की क्रान्ति के एक नायक अर्नेस्ट गोवेरा ने एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका के देशों को तीसरी दुनिया का नाम दिया । जहां एक वर्ग के पास सब कुछ और दूसरे के पास कुछ नहीं ।
एक मालिक है । और दूसरा गुलाम, जिसे दिन-भर कड़ी मेहनत के बावजूद भरपेट भोजन नही मिलता परिणामस्वरुप वे तरह-तरह के रोगों के शिकार बनते हैं ।
इस वर्ग की मुक्ति के लिए उन्होने संघर्ष का आह्वान किया । जीवन भर अस्थमा के मरीज रहते हुए अर्नेस्ट गोवेरा ने न केवल मुक्ति संघर्ष का नेतृत्व किया वरन उसमे सैनिक बनकर स्वयं भी लड़ते रहे और उस पूरी समाज व्यवस्था को बदल डाला जहां शोषण, अन्याय और अत्याचार को पोषण मिलता था । उनका यह संघर्ष किसी देश, जाति या सीमा की परिधि तक ही नहीं बंधा रहा वरन उन्होंने अपना लक्ष्य बना लिया कि जहाँ-जहाँ भी अन्याय और शोषण हो रहा है वहां-वहां संघर्ष उन्हें पुकारता है । यही कारण है कि क्यूबाई क्रान्ति के नायक होते हुए भी उन्हें समूची तीसरी दुनिया में अर्द्धविकसित देशों के सैनिक के रूप में याद किया जाता है ।
अर्नेस्ट गोवेरा का जन्म 1928 में अर्जेन्टीना में हुआ था । उन्होंने अपनी माँ व दादी को कैंसर से मरते देखा, अन्य बहुत से लोगों को बीमारी से मरते देखा । अत: उनके मन मे डॉक्टर बनने की लगन हुई । वे डॉक्टरी पढ़ने लगे, बीमारी का कारण जानने के लिए उन्होंने दूर-दूर के गाँव छान मारे, एक बार तो साइकिल पर सवार हो पूरा अर्जेन्टीना ही नाप डाला । फिर उन्होंने अपने साथी के साथ पूरे महाद्वीप का दौरा किया । इस यात्रा में कुलीगिरी कर व होटल में प्लेटें धोकर राह का खर्च निकाला । इस यात्रा के अनुभवों ने उन्हें गहन विचार मंथन में डाल दिया ।
डॉक्टरी परीक्षा पास कर कुछ समय उन्होंने प्रैक्टिस की किन्तु यात्रा के अनुभव से उन्होंने भूख व बीमारी को दूर करने के लिए डॉक्टरी के स्थान पर क्रान्ति का मार्ग चुना ।
क्यूबा में उन्होंने फिदेल कास्ट्रो के साथ गुरिल्ला दस्ता गठित किया । उनका कहना था हमारी लड़ाई--अन्याय से है, जनता से नहीं । उन्होंने अपने प्रत्येक सैनिक को सचेत कर दिया कि किसान, मजदूर और साधारण वर्ग के लोग ही नहीं शत्रु सेना के घायल सैनिकों और युद्धबंदियों के साथ भी उन्हें मानवीय व्यवहार करना चाहिए ।
अंततः क्यूबा में क्रांतिकारी सरकार बनी, वे उद्दोग विभाग के अध्यक्ष और फिर उद्दोग मंत्री बने । इस पद पर रहते हुए उन्होंने क्यूबा के औद्दोगिक विकास के लिए कई बड़े कदम उठाये | उन्होंने अपने अनुयायियों के लिये संस्मरण व साहित्य भी लिखा |
एक मालिक है । और दूसरा गुलाम, जिसे दिन-भर कड़ी मेहनत के बावजूद भरपेट भोजन नही मिलता परिणामस्वरुप वे तरह-तरह के रोगों के शिकार बनते हैं ।
इस वर्ग की मुक्ति के लिए उन्होने संघर्ष का आह्वान किया । जीवन भर अस्थमा के मरीज रहते हुए अर्नेस्ट गोवेरा ने न केवल मुक्ति संघर्ष का नेतृत्व किया वरन उसमे सैनिक बनकर स्वयं भी लड़ते रहे और उस पूरी समाज व्यवस्था को बदल डाला जहां शोषण, अन्याय और अत्याचार को पोषण मिलता था । उनका यह संघर्ष किसी देश, जाति या सीमा की परिधि तक ही नहीं बंधा रहा वरन उन्होंने अपना लक्ष्य बना लिया कि जहाँ-जहाँ भी अन्याय और शोषण हो रहा है वहां-वहां संघर्ष उन्हें पुकारता है । यही कारण है कि क्यूबाई क्रान्ति के नायक होते हुए भी उन्हें समूची तीसरी दुनिया में अर्द्धविकसित देशों के सैनिक के रूप में याद किया जाता है ।
अर्नेस्ट गोवेरा का जन्म 1928 में अर्जेन्टीना में हुआ था । उन्होंने अपनी माँ व दादी को कैंसर से मरते देखा, अन्य बहुत से लोगों को बीमारी से मरते देखा । अत: उनके मन मे डॉक्टर बनने की लगन हुई । वे डॉक्टरी पढ़ने लगे, बीमारी का कारण जानने के लिए उन्होंने दूर-दूर के गाँव छान मारे, एक बार तो साइकिल पर सवार हो पूरा अर्जेन्टीना ही नाप डाला । फिर उन्होंने अपने साथी के साथ पूरे महाद्वीप का दौरा किया । इस यात्रा में कुलीगिरी कर व होटल में प्लेटें धोकर राह का खर्च निकाला । इस यात्रा के अनुभवों ने उन्हें गहन विचार मंथन में डाल दिया ।
डॉक्टरी परीक्षा पास कर कुछ समय उन्होंने प्रैक्टिस की किन्तु यात्रा के अनुभव से उन्होंने भूख व बीमारी को दूर करने के लिए डॉक्टरी के स्थान पर क्रान्ति का मार्ग चुना ।
क्यूबा में उन्होंने फिदेल कास्ट्रो के साथ गुरिल्ला दस्ता गठित किया । उनका कहना था हमारी लड़ाई--अन्याय से है, जनता से नहीं । उन्होंने अपने प्रत्येक सैनिक को सचेत कर दिया कि किसान, मजदूर और साधारण वर्ग के लोग ही नहीं शत्रु सेना के घायल सैनिकों और युद्धबंदियों के साथ भी उन्हें मानवीय व्यवहार करना चाहिए ।
अंततः क्यूबा में क्रांतिकारी सरकार बनी, वे उद्दोग विभाग के अध्यक्ष और फिर उद्दोग मंत्री बने । इस पद पर रहते हुए उन्होंने क्यूबा के औद्दोगिक विकास के लिए कई बड़े कदम उठाये | उन्होंने अपने अनुयायियों के लिये संस्मरण व साहित्य भी लिखा |
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