' जो अपने आपको अपने भाग्य का निर्माता मानता है और अपने पुरुषार्थ के बल पर आगे बढ़ने में विश्वास करता है सफलताएं उसी को वरण करती हैं । '
एक बार प्रसिद्ध परमार्थी और श्रेष्ठ शासक हातिम से किसी ने पूछा ------ " आपने अपने से बढ़कर कोई और धर्मात्मा देखा है । "
हातिम ने कहा --- " हाँ, देखा है । एक बार मेरे यहां नगर-भोज था । सभी लाग बड़ी लालसा के साथ उस सुस्वादिष्ट भोज में सम्मिलित हुए । संयोगवश मैं उसी दिन नगर से बाहर गया । देखा एक लकड़हारा लकड़ी काट रहा था , मैंने अचम्भा व्यक्त करते हुए उससे पूछा ---- आज तो हातिम के यहां बहुमूल्य भोज है, उसमे सम्मिलित होकर आनन्द क्यों नहीं लूटते । लकड़हारे ने उपेक्षापूर्वक कहा ---- जो मेहनत से कमाकर खा सकता है वह हातिम के द्वार मुफ्त भोजन करने क्यों जाए ?
अपने श्रम और अध्यवसाय के ऊपर विश्वास करना---- मानवीय महानता का श्रेष्ठ सोपान है ।
दूसरों का सहारा तकते रहने से कोई महत्वपूर्ण सफलता नहीं पाई जा सकती ।
एक बार प्रसिद्ध परमार्थी और श्रेष्ठ शासक हातिम से किसी ने पूछा ------ " आपने अपने से बढ़कर कोई और धर्मात्मा देखा है । "
हातिम ने कहा --- " हाँ, देखा है । एक बार मेरे यहां नगर-भोज था । सभी लाग बड़ी लालसा के साथ उस सुस्वादिष्ट भोज में सम्मिलित हुए । संयोगवश मैं उसी दिन नगर से बाहर गया । देखा एक लकड़हारा लकड़ी काट रहा था , मैंने अचम्भा व्यक्त करते हुए उससे पूछा ---- आज तो हातिम के यहां बहुमूल्य भोज है, उसमे सम्मिलित होकर आनन्द क्यों नहीं लूटते । लकड़हारे ने उपेक्षापूर्वक कहा ---- जो मेहनत से कमाकर खा सकता है वह हातिम के द्वार मुफ्त भोजन करने क्यों जाए ?
अपने श्रम और अध्यवसाय के ऊपर विश्वास करना---- मानवीय महानता का श्रेष्ठ सोपान है ।
दूसरों का सहारा तकते रहने से कोई महत्वपूर्ण सफलता नहीं पाई जा सकती ।
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