संसार मे अपरिमित ज्ञान भरा पड़ा है पर उसे तभी प्राप्त किए जा सकता है जब अपना अहंकार मिटा कर शिष्य भाव लाया जाये , श्रद्धा और भावना पूर्वक ज्ञान पाने की पवित्रता व्यक्त की जाये ।
आश्रम में एक नया शिष्य आया । गुरु जी ने उसकी निष्ठा परखने के लिए उसे बरतन माँजने का काम दे दिया । शिष्य ख़ुशी -ख़ुशी बरतन माँजता और इसी प्रकार झाड़ू लगाने आदि के अन्य काम करता । साथ ही कान लगाकर गुरूजी के उपदेशों को सुनता रहता । अपनी कर्तव्यपरायणता के कारण वह गुरूजी का परमप्रिय शिष्य हो गया और अंत में उनका उत्तराधिकारी हुआ ।
इस शिष्य का नाम था ----- सिख सम्प्रदाय के महान धर्मगुरु ' अर्जुनदेव ' ।
आश्रम में एक नया शिष्य आया । गुरु जी ने उसकी निष्ठा परखने के लिए उसे बरतन माँजने का काम दे दिया । शिष्य ख़ुशी -ख़ुशी बरतन माँजता और इसी प्रकार झाड़ू लगाने आदि के अन्य काम करता । साथ ही कान लगाकर गुरूजी के उपदेशों को सुनता रहता । अपनी कर्तव्यपरायणता के कारण वह गुरूजी का परमप्रिय शिष्य हो गया और अंत में उनका उत्तराधिकारी हुआ ।
इस शिष्य का नाम था ----- सिख सम्प्रदाय के महान धर्मगुरु ' अर्जुनदेव ' ।
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