' लेखन की सार्थकता तो तभी है जब सामान्य से सामान्य व्यक्ति को भी वह जीवन संघर्ष और विकारों को पराजित करने की प्रेरणा दे ' खांडेकर जी ने इस कसौटी पर खरा उतरने वाला विशाल साहित्य प्रस्तुत किया ।
64 वर्ष की आयु में जब शरीर साथ देने से इन्कार करने लगता है तो खांडेकर जी ने अपनी उन कृतियों को कलम का स्पर्श दिया , जो अधूरी पड़ी थीं l साहित्यकार कभी बूढ़ा नहीं होता क्योंकि लेखनी और शब्द ही तो उसके शरीर और प्राण हैं l इस वृद्धावस्था में ही खांडेकर जी ने पंद्रह उपन्यास , दो सौ निबंध , चार सौ से अधिक लघु कथाएं तथा सौ -डेढ़ सौ काव्य के ग्रंथों का प्रणयन किया l साहित्य के साथ वे जन सेवा की ओर प्रेरित हुए l
चिंतन - मनन द्वारा उन्होंने यह जाना कि सभी समस्याओं और विकारों को सुलझाने का एकमात्र उपाय है ---- जनमानस के स्तर को ऊँचा उठाया जाये , इसके लिए उन्होंने माध्यम चुना ----- रंगमंच , फिल्म , और साहित्य l उन्होंने शिक्षक पद से त्यागपत्र दे दिया और हंस पिक्चर्स में आ गये , इस फिल्म कंपनी के लिए उन्होंने कई चित्र कथाओं का निर्माण किया l उनकी सभी फिल्म कथाएं समाज सुधार के उद्देश्य को ध्यान में रखकर लिखी गईं थीं
उनका पहला कथा चित्र ' छाया ' के नाम से रिलीज हुआ , इस फिल्म को उत्कृष्ट सिने कथानक का स्वर्ण पदक मिला , अच्छे स्तर की मराठी फिल्मों के निर्माण में उनका अपूर्व योगदान रहा l
'ययाति ' पुस्तक पर उन्हें साहित्य अकादमी ने पुरस्कृत किया l उन्हें ' ज्ञानपीठ पुरस्कार ' भी मिला l
64 वर्ष की आयु में जब शरीर साथ देने से इन्कार करने लगता है तो खांडेकर जी ने अपनी उन कृतियों को कलम का स्पर्श दिया , जो अधूरी पड़ी थीं l साहित्यकार कभी बूढ़ा नहीं होता क्योंकि लेखनी और शब्द ही तो उसके शरीर और प्राण हैं l इस वृद्धावस्था में ही खांडेकर जी ने पंद्रह उपन्यास , दो सौ निबंध , चार सौ से अधिक लघु कथाएं तथा सौ -डेढ़ सौ काव्य के ग्रंथों का प्रणयन किया l साहित्य के साथ वे जन सेवा की ओर प्रेरित हुए l
चिंतन - मनन द्वारा उन्होंने यह जाना कि सभी समस्याओं और विकारों को सुलझाने का एकमात्र उपाय है ---- जनमानस के स्तर को ऊँचा उठाया जाये , इसके लिए उन्होंने माध्यम चुना ----- रंगमंच , फिल्म , और साहित्य l उन्होंने शिक्षक पद से त्यागपत्र दे दिया और हंस पिक्चर्स में आ गये , इस फिल्म कंपनी के लिए उन्होंने कई चित्र कथाओं का निर्माण किया l उनकी सभी फिल्म कथाएं समाज सुधार के उद्देश्य को ध्यान में रखकर लिखी गईं थीं
उनका पहला कथा चित्र ' छाया ' के नाम से रिलीज हुआ , इस फिल्म को उत्कृष्ट सिने कथानक का स्वर्ण पदक मिला , अच्छे स्तर की मराठी फिल्मों के निर्माण में उनका अपूर्व योगदान रहा l
'ययाति ' पुस्तक पर उन्हें साहित्य अकादमी ने पुरस्कृत किया l उन्हें ' ज्ञानपीठ पुरस्कार ' भी मिला l
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