वे जानते थे कि साहित्य की शक्ति अपरिमित होती है , साहित्य जन - जन के पास जाकर उनके मन - मंदिर के द्वार खटखटाने में जितना सक्षम व स्थायी साधन हो सकता है उतना कोई दूसरा साधन नहीं ।
महाकवि कुमारन आशान का जन्म 1873 में केरल के एक संपन्न कुलीन परिवार में हुआ था । शिक्षा पूर्ण करके वे समाज सेवा के क्षेत्र में कार्य करने लगे । समाज सेवा के दौरान उन्होंने यह देखा कि भारतीय समाज में महिलाएं और अछूत ये दो वर्ग ऐसे हैं जिन्हें समानता के अधिकार प्राप्त नहीं हैं । पचास प्रतिशत महिलाएं व तीस प्रतिशत अछूतों को निकाल दिया जाये तो समाज में रह ही क्या जायेगा । अत: उन्होंने साहित्य सृजन के माध्यम से इन्हें समानता का अधिकार दिलाने का प्रयत्न किया । अपने सदुद्देश्य काव्य सृजन के कारण वे अविस्मरणीय बन गये हैं ।
उनके दो काव्य बहुत ही प्रभावशाली हुए ---- एक है ' विचार मग्न सीता ' और दूसरा है ' चाण्डाल भिक्षुकि ' ।
' चाण्डाल भिक्षुकि ' में उन्होंने एक कथा द्वारा यह बताया कि मानवीय संबंध सर्वोच्च हैं , जाति-पांति के भेद मनुष्यों द्वारा बनाये हुए हैं । उन्हें तोड़ा जा सकता है । अपने इस काव्य में उन्होंने विप्लव के समय माता-पिता द्वारा अरक्षित छोड़ी गई ब्राह्मण कन्या सावित्री का विवाह हरिजन युवक चातन से कराया है जिसने निस्स्वार्थ भाव से उसकी सेवा की थी ।
इस काव्य की व्यापक प्रतिक्रिया केरल में हुई । 1939 में वहां के मन्दिरों के द्वार हरिजनों के लिए खोल दिए गये । महात्मा जी के अछूतोद्धार आन्दोलन की पृष्ठभूमि का काम भी इसी प्रतिक्रिया ने किया ।
' विचार मग्न सीता ' की नायिका सीता रामायण की सीता से भिन्न परम्पराओं को तोड़ने वाली सीता है ,
राम को मर्यादा पुरुषोत्तम मानते हुए भी आदर्श पति मानने को तैयार नहीं ।
संस्कृत कवियों की परंपरा के अनुसार कोई अठारह सर्गों का महाकाव्य रचने के बाद ही महाकवि कहलाने का अधिकारी होता है किन्तु उन्होंने बिना एक भी महाकाव्य रचे मलयालम के महाकवि होने का सौभाग्य पाया । जो प्रेरणाएं एक महाकाव्य में भरी जा सकती थीं वे ही उन्होंने अपने 41 छंदों के ' वीण पुवु ' ( पतित कुसुम ) काव्य में भरकर दिखा दीं ।
उनका यह काव्य मलयालम साहित्य में अमर हो गया ।
महाकवि कुमारन आशान का जन्म 1873 में केरल के एक संपन्न कुलीन परिवार में हुआ था । शिक्षा पूर्ण करके वे समाज सेवा के क्षेत्र में कार्य करने लगे । समाज सेवा के दौरान उन्होंने यह देखा कि भारतीय समाज में महिलाएं और अछूत ये दो वर्ग ऐसे हैं जिन्हें समानता के अधिकार प्राप्त नहीं हैं । पचास प्रतिशत महिलाएं व तीस प्रतिशत अछूतों को निकाल दिया जाये तो समाज में रह ही क्या जायेगा । अत: उन्होंने साहित्य सृजन के माध्यम से इन्हें समानता का अधिकार दिलाने का प्रयत्न किया । अपने सदुद्देश्य काव्य सृजन के कारण वे अविस्मरणीय बन गये हैं ।
उनके दो काव्य बहुत ही प्रभावशाली हुए ---- एक है ' विचार मग्न सीता ' और दूसरा है ' चाण्डाल भिक्षुकि ' ।
' चाण्डाल भिक्षुकि ' में उन्होंने एक कथा द्वारा यह बताया कि मानवीय संबंध सर्वोच्च हैं , जाति-पांति के भेद मनुष्यों द्वारा बनाये हुए हैं । उन्हें तोड़ा जा सकता है । अपने इस काव्य में उन्होंने विप्लव के समय माता-पिता द्वारा अरक्षित छोड़ी गई ब्राह्मण कन्या सावित्री का विवाह हरिजन युवक चातन से कराया है जिसने निस्स्वार्थ भाव से उसकी सेवा की थी ।
इस काव्य की व्यापक प्रतिक्रिया केरल में हुई । 1939 में वहां के मन्दिरों के द्वार हरिजनों के लिए खोल दिए गये । महात्मा जी के अछूतोद्धार आन्दोलन की पृष्ठभूमि का काम भी इसी प्रतिक्रिया ने किया ।
' विचार मग्न सीता ' की नायिका सीता रामायण की सीता से भिन्न परम्पराओं को तोड़ने वाली सीता है ,
राम को मर्यादा पुरुषोत्तम मानते हुए भी आदर्श पति मानने को तैयार नहीं ।
संस्कृत कवियों की परंपरा के अनुसार कोई अठारह सर्गों का महाकाव्य रचने के बाद ही महाकवि कहलाने का अधिकारी होता है किन्तु उन्होंने बिना एक भी महाकाव्य रचे मलयालम के महाकवि होने का सौभाग्य पाया । जो प्रेरणाएं एक महाकाव्य में भरी जा सकती थीं वे ही उन्होंने अपने 41 छंदों के ' वीण पुवु ' ( पतित कुसुम ) काव्य में भरकर दिखा दीं ।
उनका यह काव्य मलयालम साहित्य में अमर हो गया ।
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