' परिवार में रहकर , कर्तव्यों का पालन करते हुए भी आत्मा का ज्योर्तिमय प्रकाश पाया जा सकता
है । ' सुभाषचंद्र बोस गीता को सदैव अपने पास रखते थे , विश्वासपूर्वक कई अवसरों पर उन्होंने कहा कि मेरी प्रेरणा और शक्ति इस ग्रन्थ से नि:सृत होकर मुझ तक पहुंचती है ।
आजाद हिन्द फौज के संगठन के लिए वे एक बार बैंकाक गये , इसके लिए उन्हें धन की सख्त जरुरत थी किन्तु कैसे कहें ? कुछ महिलाओं ने नेताजी के इस संकोच को समझ लिया और मंच पर आकर अपने आभूषण दान देने आरम्भ किये और भीने स्वर में अपनी यह श्रद्धांजलि अर्पित की । फिर तो महिलाओं में गहने देने की होड़ लग गई , यहाँ तक कि बैंकाक की महिलाओं ने भी अपने गहने देने आरम्भ कर दिए । यह देखकर नेताजी भावाभिभूत हो गये और रुधे हुए कंठ से बोले ---------- " पुत्र कुपुत्र हो सकता है , माता कुमाता नहीं हो सकती । मुझे यहाँ निराश , दुःखी और लाचार देखकर सैकड़ों रूपों में मेरी माँ मेरी लाज छिपाने के लिए यहाँ भी आ गईं । माँ के दो हाथों से ही मैंने अभी तक दुलार पाया था किन्तु आज तो माँ का ऐसा ऐसा प्रेम मुझ पर उमड़ा है कि हजार हाथों से मेरी माँ मुझे दुलारते मेरा रूप संवारने के लिए आ गईं हैं । भारत देश की आजादी के दर्शन मेरे भाग्य में बदे हैं या नहीं , मैं नहीं जानता । किन्तु आजादी के इस अभियान में मुझे
माँ की महिमा के दर्शन हो गये , मैं सचमुच कृतार्थ हो गया । "
माँ की ऐसी महिमा को सुनकर वहां उपस्थित प्रत्येक श्रोता की आँखे श्रद्धा से सजल हो उठीं ।
है । ' सुभाषचंद्र बोस गीता को सदैव अपने पास रखते थे , विश्वासपूर्वक कई अवसरों पर उन्होंने कहा कि मेरी प्रेरणा और शक्ति इस ग्रन्थ से नि:सृत होकर मुझ तक पहुंचती है ।
आजाद हिन्द फौज के संगठन के लिए वे एक बार बैंकाक गये , इसके लिए उन्हें धन की सख्त जरुरत थी किन्तु कैसे कहें ? कुछ महिलाओं ने नेताजी के इस संकोच को समझ लिया और मंच पर आकर अपने आभूषण दान देने आरम्भ किये और भीने स्वर में अपनी यह श्रद्धांजलि अर्पित की । फिर तो महिलाओं में गहने देने की होड़ लग गई , यहाँ तक कि बैंकाक की महिलाओं ने भी अपने गहने देने आरम्भ कर दिए । यह देखकर नेताजी भावाभिभूत हो गये और रुधे हुए कंठ से बोले ---------- " पुत्र कुपुत्र हो सकता है , माता कुमाता नहीं हो सकती । मुझे यहाँ निराश , दुःखी और लाचार देखकर सैकड़ों रूपों में मेरी माँ मेरी लाज छिपाने के लिए यहाँ भी आ गईं । माँ के दो हाथों से ही मैंने अभी तक दुलार पाया था किन्तु आज तो माँ का ऐसा ऐसा प्रेम मुझ पर उमड़ा है कि हजार हाथों से मेरी माँ मुझे दुलारते मेरा रूप संवारने के लिए आ गईं हैं । भारत देश की आजादी के दर्शन मेरे भाग्य में बदे हैं या नहीं , मैं नहीं जानता । किन्तु आजादी के इस अभियान में मुझे
माँ की महिमा के दर्शन हो गये , मैं सचमुच कृतार्थ हो गया । "
माँ की ऐसी महिमा को सुनकर वहां उपस्थित प्रत्येक श्रोता की आँखे श्रद्धा से सजल हो उठीं ।
अमर योद्धा नेताजी सुभाष चंद्र बोस - आजादी के प्रेरणास्त्रोत
ReplyDeleteराष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का चिंतन और नेताजी सुभाषचंद्र बोस
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