भगवान राम , लक्ष्मण एवं सीता जी ने पिता की आज्ञा से 14 वर्ष अरण्यवास किया । निरंतर तप या अनीति से संघर्ष में ही जीवन बीता । साधनहीन थे , राजकुमार होकर भी वल्कल वस्त्र में अति प्रसन्न मन: स्थिति में रहते थे । सम्राट से भी ज्यादा वे सुखी - संतुष्ट थे ।
एक विलक्षण बात है कि जब वे वन में तप कर रहे थे , राक्षसों का संहार कर रहे थे , तब उन 14 वर्षों में पूरी अयोध्या के परिजन भी धार्मिक अनुष्ठानों , जप - तप - व्रत में लीन थे । इन 14 वर्षों में किसी भी घर में एक भी संतान नहीं जन्मी | ऐसा कठोर तप अयोध्यावासियों ने अपने प्रभु के लिए किया । भगवान् के लौटकर आने के एक वर्ष बाद घर - घर में किलकारियां
गूँजी । वाल्मीकि रामायण में यह प्रसंग आता है कि भरत के साथ पूरी अयोध्या ने तप किया ।
सामूहिक साधना का यह अपने आप में अनूठा उदाहरण है ।
एक विलक्षण बात है कि जब वे वन में तप कर रहे थे , राक्षसों का संहार कर रहे थे , तब उन 14 वर्षों में पूरी अयोध्या के परिजन भी धार्मिक अनुष्ठानों , जप - तप - व्रत में लीन थे । इन 14 वर्षों में किसी भी घर में एक भी संतान नहीं जन्मी | ऐसा कठोर तप अयोध्यावासियों ने अपने प्रभु के लिए किया । भगवान् के लौटकर आने के एक वर्ष बाद घर - घर में किलकारियां
गूँजी । वाल्मीकि रामायण में यह प्रसंग आता है कि भरत के साथ पूरी अयोध्या ने तप किया ।
सामूहिक साधना का यह अपने आप में अनूठा उदाहरण है ।
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