कर्नाटक के महान संत वसवेश्वर कहते थे ---- भक्ति सरल नहीं है , उसकी पूर्णता और सार्थकता के लिए मनुष्य का व्यक्तिक और सामाजिक आचरण शुद्ध , सच्चरित्र , ईमानदार, नेक और पवित्र होना चाहिए । उनका कहना था कि केवल पूजा - प्रार्थना के आधार पर भगवान का अनुग्रह नहीं प्राप्त किया जा सकता । ईश्वर की प्राप्ति उच्च चरित्र , उदार प्रकृति , परमार्थ परायणता पर निर्भर है ।
उन्होंने व्याख्यान शैली नहीं अपनाई वरन सुकरात की तरह प्रश्नोत्तर करके विचार विमर्श और मंत्रणा का क्रम अपनाकर चले l उनके संपर्क में आने वाले सच्चे धर्मपरायण बनते चले गये , यह संख्या इतनी बढ़ी कि एक धर्म - सम्प्रदाय ही बनता चला गया जो बाद में ' लिंगायत ' के नाम से प्रसिद्ध हुआ । उनका कहना था ---- कर्म ही ईश्वर की सच्ची पूजा है । उनका यह जीवन मन्त्र अधिकांश लोगों का जीवन मन्त्र बना ।
उन्होंने संकीर्ण जाति - पांति को अधार्मिक घोषित करते हुए मानव - मात्र की एकता समता को सही बताया । अपने प्रभावशाली व्यक्तित्व से जनता को प्रभावित कर के अन्धविश्वासों और अवांछनीय मान्यताओं को छोड़ने तथा विवेकशीलता का मार्ग अपनाने के लिए सहमत किया । अब भी लिंगायत सम्प्रदाय के लोग उन्हें श्रद्धा और भक्ति के साथ नमन करते हैं ।
उन्होंने व्याख्यान शैली नहीं अपनाई वरन सुकरात की तरह प्रश्नोत्तर करके विचार विमर्श और मंत्रणा का क्रम अपनाकर चले l उनके संपर्क में आने वाले सच्चे धर्मपरायण बनते चले गये , यह संख्या इतनी बढ़ी कि एक धर्म - सम्प्रदाय ही बनता चला गया जो बाद में ' लिंगायत ' के नाम से प्रसिद्ध हुआ । उनका कहना था ---- कर्म ही ईश्वर की सच्ची पूजा है । उनका यह जीवन मन्त्र अधिकांश लोगों का जीवन मन्त्र बना ।
उन्होंने संकीर्ण जाति - पांति को अधार्मिक घोषित करते हुए मानव - मात्र की एकता समता को सही बताया । अपने प्रभावशाली व्यक्तित्व से जनता को प्रभावित कर के अन्धविश्वासों और अवांछनीय मान्यताओं को छोड़ने तथा विवेकशीलता का मार्ग अपनाने के लिए सहमत किया । अब भी लिंगायत सम्प्रदाय के लोग उन्हें श्रद्धा और भक्ति के साथ नमन करते हैं ।
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