' सफलता किसी के चेहरे पर नहीं लिखी होती वह मनुष्य के पुरुषार्थ , पराक्रम और अडिग निष्ठा के बल पर स्वयं लिखनी होती है । '
बात उन दिनों की है जब जाम्बिया में यूनियन जैक फहराता था और वहां की बहुसंख्यक नीग्रो जनता चंद गोरी चमड़ी वालों की बिना मूल्य गुलामी कर रही थी । उस समय अफ्रीकियों को नफरत की निगाह से देखा जाता था । गृहस्थी में जरुरत पड़ने वाली चीजें भी वे बाजार जाकर दुकान के सामने खड़े होकर नहीं खरीद सकते थे । उनके लिए दुकान की बगल में एक छेद होता था जिसमे से अफ्रीकी अपना मुँह दिखाए बिना सामान खरीदते थे । दुकानदार मुँह-माँगा दाम वसूल करता था और अफ्रीकी ग्राहक थोड़ी भी आनाकानी करता तो वास्तु तो नहीं मिलती कोड़ों की मार भी खानी पड़ती । अफ्रीकी समाज पर गोरे लोगों द्वारा किये जाने वाले अत्याचारों को देखकर उन्होंने संकल्प लिया कि जब कभी अवसर मिलेगा तो इस व्यवस्था पर करारे प्रहार करेंगे ।
पिता का देहान्त हो जाने के बाद स्कूल की फीस जमा करने के लिए भी पैसे नहीं थे तब स्कूल के प्रधानाचार्य ने कैनेथ कोंडा को बगीचे की निराई- गुड़ाई का काम दे दिया जिसे उन्होंने वरदान समझा | फीस तथा पुस्तकों की व्यवस्था के साथ यह निर्वाह में भी सहायक था । प्रशिक्षण समाप्त कर वे अध्यापक बन गये और उन्होंने सार्वजनिक जीवन में प्रवेश किया और एक वेलफेयर एसोसिएशन का गठन किया जिसका उद्देश्य था ---- अफ्रीकी लोगों में आत्मविश्वास और साहस की भावना का संचार | आगे चलकर वे अफ्रीकी नेशनल कांग्रेस के भी सदस्य बने ।
उनके प्रयासों से पूरे प्रान्त की जनता जाग गई और स्वतंत्रता के लिए मर - मिटने को उठ खड़ी हुई । उनकी लोकप्रियता से सरकार को चिंता होने लगी , उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया |
महात्मा गाँधी की तरह उनका आन्दोलन भी अहिंसक था , उन्हें मानवता की शक्ति पर विश्वास था यह अहिंसक संग्राम शीघ्र ही निर्णायक बिन्दु पर पहुँचा और 23 अक्तूबर 1964 को जाम्बिया सदियों की दासता से मुक्त हुआ , सत्ताधारियों ने शासन तंत्र कैनेथ कोंडा को सौंपा । जैसे देश की आजादी के लिए उन्होंने दिन - रात एक कर दिया अब उसी तरह वे देश के पुनर्निर्माण में जुटे ।
बात उन दिनों की है जब जाम्बिया में यूनियन जैक फहराता था और वहां की बहुसंख्यक नीग्रो जनता चंद गोरी चमड़ी वालों की बिना मूल्य गुलामी कर रही थी । उस समय अफ्रीकियों को नफरत की निगाह से देखा जाता था । गृहस्थी में जरुरत पड़ने वाली चीजें भी वे बाजार जाकर दुकान के सामने खड़े होकर नहीं खरीद सकते थे । उनके लिए दुकान की बगल में एक छेद होता था जिसमे से अफ्रीकी अपना मुँह दिखाए बिना सामान खरीदते थे । दुकानदार मुँह-माँगा दाम वसूल करता था और अफ्रीकी ग्राहक थोड़ी भी आनाकानी करता तो वास्तु तो नहीं मिलती कोड़ों की मार भी खानी पड़ती । अफ्रीकी समाज पर गोरे लोगों द्वारा किये जाने वाले अत्याचारों को देखकर उन्होंने संकल्प लिया कि जब कभी अवसर मिलेगा तो इस व्यवस्था पर करारे प्रहार करेंगे ।
पिता का देहान्त हो जाने के बाद स्कूल की फीस जमा करने के लिए भी पैसे नहीं थे तब स्कूल के प्रधानाचार्य ने कैनेथ कोंडा को बगीचे की निराई- गुड़ाई का काम दे दिया जिसे उन्होंने वरदान समझा | फीस तथा पुस्तकों की व्यवस्था के साथ यह निर्वाह में भी सहायक था । प्रशिक्षण समाप्त कर वे अध्यापक बन गये और उन्होंने सार्वजनिक जीवन में प्रवेश किया और एक वेलफेयर एसोसिएशन का गठन किया जिसका उद्देश्य था ---- अफ्रीकी लोगों में आत्मविश्वास और साहस की भावना का संचार | आगे चलकर वे अफ्रीकी नेशनल कांग्रेस के भी सदस्य बने ।
उनके प्रयासों से पूरे प्रान्त की जनता जाग गई और स्वतंत्रता के लिए मर - मिटने को उठ खड़ी हुई । उनकी लोकप्रियता से सरकार को चिंता होने लगी , उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया |
महात्मा गाँधी की तरह उनका आन्दोलन भी अहिंसक था , उन्हें मानवता की शक्ति पर विश्वास था यह अहिंसक संग्राम शीघ्र ही निर्णायक बिन्दु पर पहुँचा और 23 अक्तूबर 1964 को जाम्बिया सदियों की दासता से मुक्त हुआ , सत्ताधारियों ने शासन तंत्र कैनेथ कोंडा को सौंपा । जैसे देश की आजादी के लिए उन्होंने दिन - रात एक कर दिया अब उसी तरह वे देश के पुनर्निर्माण में जुटे ।
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