' मनुष्य अपने भाग्य का निर्माता स्वयं है '---- इस उक्ति को यिरास ने अपने जीवन में सार्थक किया । ' अल्बर्टो यिरास का बचपन घोर दरिद्रता में बीता । दस वर्ष के थे तो पिता की मृत्यु हो गई , माँ ने दूसरे व्यक्ति से विवाह कर लिया । अधिक समय तक स्कूल का सहारा न मिला ।
व्यवहार से , भाषणों से , पुस्तकों से , समाज से , पशु - पक्षियों से और अपनी अंत: प्रेरणा से प्रांगण में बिखरे ज्ञान के एक - एक कण - कण को बटोरते हुए , उसे अपने जीवन में उतारते हुए , व्यवहार में लाते हुए , एक अनाथ बालक से कोलम्बिया के राष्ट्रपति पद तक पहुंचे थे , एक दम नहीं एक - एक सोपान चढ़ते गये ------- अठारह वर्ष की आयु में उन्होंने पत्रकारिता के क्षेत्र में प्रवेश किया और अपनी लगन , सूझ - बूझ , परिश्रम व योग्यता के बल पर वे बोगोटा के प्रमुख पत्र ' टोइम्पो ' के प्रधान संपादक बन गये l 26 वर्ष की आयु में चेम्बर ऑफ डिप्टीज के अध्यक्ष ,
27 वर्ष की आयु में राज्य मंत्री , 37 वर्ष की आयु में अमेरिका में लैटिन कोलम्बिया के राजदूत और 39 वर्ष की आयु में वहां के राष्ट्रपति बनकर यिरास ने यह सिद्ध कर दिया कि मनुष्य अपने भाग्य का निर्माता स्वयं है । मनुष्य की जिज्ञासा , श्रम , लगन और संकल्प वे साथी - सहयोगी हैं जो उसे निरंतर आगे बढ़ाते ही रहते हैं l उनकी ये उपलब्धियां जितनी आश्चर्यजनक हैं उतनी ही प्रेरक भी । ये सब उपलब्धियां उन्होंने अपनी योग्यता व निष्ठां के बल पर प्राप्त कीं, छल , सिफारिशों की अनैतिक बैसाखियों के सहारे नहीं ।
उन दिनों कोलम्बिया में क्रूर तानाशाह रोजस की सत्ता थी , उसके पास सैन्य बल था पर यिरास के पास अन्याय का सामना करने के लिए नैतिकता और सत्य की शक्ति थी , इसी के बल पर निर्भय होकर उन्होंने अत्याचारपूर्ण तानाशाही से कोलम्बिया को मुक्त कराने के लिए प्रबल जन - आन्दोलन उठाया । उनके प्रयास से जनता जाग गई , तानाशाही का अंत हुआ । यिरास चुनाव में खड़े हुए और राष्ट्रपति बने l
दुर्योग से एक वर्ष बाद ही उनका दल विघटित हो गया और उन्हें पद से इस्तीफा देना
पड़ा । उनके दल के अन्य सदस्यों ने उनसे राष्ट्रपति पद पर बने रहने और चुनाव न करा के राष्ट्रपति शासन लागू कर देने की राय दी । उनके मन में पद का तनिक भी मोह नहीं था ।
उनके एक मित्र ने उनसे इस पद त्याग का कारण पूछा तो उन्होंने कहा ------ " किसी व्यक्ति के जीवन में पद का जितना महत्व नहीं होता उससे लाख गुना महत्व होता है उसके सिद्धांतों का । जिस मनुष्य के जीवन में कोई उच्च सिद्धांत नहीं उसे मनुष्य कहना मानवता का अपमान करना है और मैं राष्ट्रपति पद से सच्चे मानव का पद ऊँचा मानता हूँ ।
अल्बर्टो यिरास जैसे उदाहरण सोयी मानवता को जगाने के लिए उत्प्रेरक का काम करते हैं ।
व्यवहार से , भाषणों से , पुस्तकों से , समाज से , पशु - पक्षियों से और अपनी अंत: प्रेरणा से प्रांगण में बिखरे ज्ञान के एक - एक कण - कण को बटोरते हुए , उसे अपने जीवन में उतारते हुए , व्यवहार में लाते हुए , एक अनाथ बालक से कोलम्बिया के राष्ट्रपति पद तक पहुंचे थे , एक दम नहीं एक - एक सोपान चढ़ते गये ------- अठारह वर्ष की आयु में उन्होंने पत्रकारिता के क्षेत्र में प्रवेश किया और अपनी लगन , सूझ - बूझ , परिश्रम व योग्यता के बल पर वे बोगोटा के प्रमुख पत्र ' टोइम्पो ' के प्रधान संपादक बन गये l 26 वर्ष की आयु में चेम्बर ऑफ डिप्टीज के अध्यक्ष ,
27 वर्ष की आयु में राज्य मंत्री , 37 वर्ष की आयु में अमेरिका में लैटिन कोलम्बिया के राजदूत और 39 वर्ष की आयु में वहां के राष्ट्रपति बनकर यिरास ने यह सिद्ध कर दिया कि मनुष्य अपने भाग्य का निर्माता स्वयं है । मनुष्य की जिज्ञासा , श्रम , लगन और संकल्प वे साथी - सहयोगी हैं जो उसे निरंतर आगे बढ़ाते ही रहते हैं l उनकी ये उपलब्धियां जितनी आश्चर्यजनक हैं उतनी ही प्रेरक भी । ये सब उपलब्धियां उन्होंने अपनी योग्यता व निष्ठां के बल पर प्राप्त कीं, छल , सिफारिशों की अनैतिक बैसाखियों के सहारे नहीं ।
उन दिनों कोलम्बिया में क्रूर तानाशाह रोजस की सत्ता थी , उसके पास सैन्य बल था पर यिरास के पास अन्याय का सामना करने के लिए नैतिकता और सत्य की शक्ति थी , इसी के बल पर निर्भय होकर उन्होंने अत्याचारपूर्ण तानाशाही से कोलम्बिया को मुक्त कराने के लिए प्रबल जन - आन्दोलन उठाया । उनके प्रयास से जनता जाग गई , तानाशाही का अंत हुआ । यिरास चुनाव में खड़े हुए और राष्ट्रपति बने l
दुर्योग से एक वर्ष बाद ही उनका दल विघटित हो गया और उन्हें पद से इस्तीफा देना
पड़ा । उनके दल के अन्य सदस्यों ने उनसे राष्ट्रपति पद पर बने रहने और चुनाव न करा के राष्ट्रपति शासन लागू कर देने की राय दी । उनके मन में पद का तनिक भी मोह नहीं था ।
उनके एक मित्र ने उनसे इस पद त्याग का कारण पूछा तो उन्होंने कहा ------ " किसी व्यक्ति के जीवन में पद का जितना महत्व नहीं होता उससे लाख गुना महत्व होता है उसके सिद्धांतों का । जिस मनुष्य के जीवन में कोई उच्च सिद्धांत नहीं उसे मनुष्य कहना मानवता का अपमान करना है और मैं राष्ट्रपति पद से सच्चे मानव का पद ऊँचा मानता हूँ ।
अल्बर्टो यिरास जैसे उदाहरण सोयी मानवता को जगाने के लिए उत्प्रेरक का काम करते हैं ।
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