' व्यक्ति का चरित्र और उसकी उच्च भावनाएं ही उसे महान और यशस्वी बनाती हैं , पद - सम्मान नहीं | राजकुमार चूड़ामणि के व्यक्तित्व और कर्तृत्व में यह तथ्य प्रखर रूप में प्रकट हुआ है । '
मेवाड़ के राजसिंहासन पर वीरवर महाराणा कुम्भा के पुत्र महाराणा लाखा आसीन थे , उनके पास ही सिंहासन पर उनके बड़े पुत्र राजकुमार चूड़ामणि आसीन थे , जिनके शौर्य और सच्चरित्रता की कहानियां राजघरानो में कही जा रही थीं । यह सुनकर जोधपुर नरेश राव रणमल ने अपनी कन्या बिन्दुमती के विवाह का प्रस्ताव राजपुरोहित द्वारा भेजा ।
मेवाड़ के महाराणा लाखा का दरबार लगा था , सभी उमराव अपने - अपने स्थान पर बैठे थे । जोधपुर नरेश के राजपुरोहित ने अभिवादन कर अपने आगमन का प्रयोजन बताया तो महाराणा लाखा हँसते हुए बोले ---- " हम जानते हैं पुरोहित जी राव रणमल अपनी कन्या का रिश्ता राजकुमार चूड़ामणि के लिए नहीं भेजेगें तो क्या हम जैसे वृद्धों के लिए भेजेंगें । "
महाराणा लाखा पचास वर्ष के थे किन्तु अच्छे स्वास्थ्य के कारण पैंतीस वर्ष के दीखते थे । जब वे यह बात कह रहे थे तब राजकुमार चूड़ामणि की द्रष्टि पिता के मुखमंडल पर ही थी । पिता की दुर्बलता राजकुमार से छिपी न रही । इसके पहले महाराणा इस संबंध में अपना मत प्रकट करते , राजकुमार बोल उठे ---- " महाराज ! जब आपने रणमल की सुपुत्री के विषय में ऐसी बात कही तो वो मेरे लिए माता के तुल्य हो गईं हैं । आप अपने लिए ही इस संबंध को स्वीकार कर लें । "
महाराणा ने समझाया कि यह बात हँसी में कही गई थी , इसे गहराई से न लें ।
राजकुमार ने कहा --- " आपने चाहे किसी रूप में ही कहा हो , अब वे मेरी माता बन चुकी हैं ।
जब पुरोहित ने महाराणा से यह कहा ---" महाराज ! यदि आप राजकुमारी से विवाह भी कर लें तो आपके बाद राज्य के स्वामी तो राजकुमार चूड़ामणि ही होंगे , हमारी राजकुमारी की कोख से उत्पन्न राजकुमार नहीं । " राजपुरोहित की अर्थभरी बात सुनकर राजकुमार चूड़ामणि बोले ---- " आप निश्चिन्त रहें पुरोहित जी । मैं ईश्वर को साक्षी मानकर यह प्रतिज्ञा करता हूँ कि मैं मेवाड़ के राजसिंहासन का कभी दावेदार नहीं बनूँगा और न ही मेरी संतान ही । मैं अपना युवराज पद छोड़ता हूँ । " राजकुमार की इस भीष्म प्रतिज्ञा पर सभी विस्मित रह गये । इस महान त्याग की अनूठी आभा उनके चेहरे पर विराज गई ।
महाराणा लाखा ने जोधपुर की राजकुमारी बिन्दुमती से विवाह किया , वे मेवाड़ की महारानी बनी , उनके मोकल नामक पुत्र उत्पन्न हुआ , महाराणा की मृत्यु के बाद अल्पव्यस्क मोकल ही महाराणा के पद पर आसीन हुआ । राजकुमार चूड़ामणि ने राज प्रबंध में उनकी सहायता की और शत्रुओं से महाराणा मोकल की और मेवाड़ के राज सिंहासन की रक्षा की ।
राजकुमार चूड़ामणि के त्याग ने उन्हें ही नहीं उनके वंशजों को भी अक्षय गौरव प्रदान किया , उनके वंशज ' चूड़ावत ' कहलाते थे ।
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