रूस विश्वविद्यालय का एक विद्दार्थी अपने जीवन की असफलताओं से निराश होकर आत्महत्या का निश्चय कर बैठा । एकान्त में जाकर उसने विषपान के लिए जहर की शीशी निकाली तभी उसकी निगाह पास पड़े रद्दी अखबार के पन्ने पर गई । उस लेख में आशा और निराशाओं के दिन - रात , प्रकाश - अन्धकार की इतनी प्रभावशाली विवेचना की गई थी कि पढ़कर युवक छात्र ने अपने हाथ की शीशी को दूर फेंक दिया l इसके लेखक थे ---- हर्जेन ।
इस लेख को पढ़कर वह युवक हर्जेन का अनुयायी बन गया और आगे चलकर रुसी क्रांति में महत्वपूर्ण योगदान दिया । हर्जेन की लेखनी में इतनी प्रभावोत्पादकता, उनके विचारों की प्रखरता और ह्रदय के उत्साह की परिचायक है । वे स्वयं एक जमीदार परिवार में जन्मे थे , फिर भी वे उस शासन व्यवस्था को बदल देने की ललक लेकर आगे बढ़े जिसमे देश की लाखों - करोड़ों मेहनतकश जनता निर्धन और फाकाकशी के दिन गुजर रही थी ।
हर्जेन के स्वाभाव की सबसे बड़ी विशेषता थी ---- उनकी पर - दुःख - कातरता । प्रतिदिन उनके पास
अभाव पीड़ित और दुःखी व्यक्ति आया करते थे , जिन्हें हर प्रकार की सांत्वना देने के साथ - साथ हर्जेन सहायता भी दिया करते थे । बीस - पच्चीस भूखे लोगों के साथ भोजन करना उनकी नियमित दिनचर्या का अंग बन गया था ।
हर्जेन ने 1857 में एक पत्र ' कोल - काल ' का प्रकाशन आरम्भ किया l जारशाही की तीखी आलोचना और कठोर प्रहारपूर्ण लेखों से भरा यह पत्र बहुत लोकप्रिय हुआ । इस पत्र को स्वयं जार भी खरीदकर पढ़ा करता था ।
इस लेख को पढ़कर वह युवक हर्जेन का अनुयायी बन गया और आगे चलकर रुसी क्रांति में महत्वपूर्ण योगदान दिया । हर्जेन की लेखनी में इतनी प्रभावोत्पादकता, उनके विचारों की प्रखरता और ह्रदय के उत्साह की परिचायक है । वे स्वयं एक जमीदार परिवार में जन्मे थे , फिर भी वे उस शासन व्यवस्था को बदल देने की ललक लेकर आगे बढ़े जिसमे देश की लाखों - करोड़ों मेहनतकश जनता निर्धन और फाकाकशी के दिन गुजर रही थी ।
हर्जेन के स्वाभाव की सबसे बड़ी विशेषता थी ---- उनकी पर - दुःख - कातरता । प्रतिदिन उनके पास
अभाव पीड़ित और दुःखी व्यक्ति आया करते थे , जिन्हें हर प्रकार की सांत्वना देने के साथ - साथ हर्जेन सहायता भी दिया करते थे । बीस - पच्चीस भूखे लोगों के साथ भोजन करना उनकी नियमित दिनचर्या का अंग बन गया था ।
हर्जेन ने 1857 में एक पत्र ' कोल - काल ' का प्रकाशन आरम्भ किया l जारशाही की तीखी आलोचना और कठोर प्रहारपूर्ण लेखों से भरा यह पत्र बहुत लोकप्रिय हुआ । इस पत्र को स्वयं जार भी खरीदकर पढ़ा करता था ।
No comments:
Post a Comment